यह घड़ी / सत्येन्द्र श्रीवास्तव

सामने जो बुत बनी-सी चुप खड़ी है वह परीक्षण की घड़ी है डेस्क पर रक्खे पड़े हैं कई कोरे पृष्ठ अँगुलियों में जड़ हुई सहमी रुकी पेंसिल दृष्टियों में बाढ़ है बीते हुए कल की बह रहे हैं धड़ों से अलगा चुके कुछ दिल अरथियाँ हैं स्याह क्षितिजों की लाश किरणों की पड़ी है मोह… Continue reading यह घड़ी / सत्येन्द्र श्रीवास्तव