मैं रात का वाचक हूँ उसका एकमात्र नुमाईंदा मैं उसका एकमात्र दोस्त कौन हैं उसके माता-पिता? हमारी सैंकड़ों जिज्ञासाओं में उसकी जगह नहीं दिखती हमारी हँसी मं तीज-त्यौहार में सामुदायिक मेलों-ठेलों में क्या कोई उसकी बात करता है हमार रुदन में भी वह एक परिपार्श्व की तरह होती है प्रेम की भूखी लड़की की तरह… Continue reading दोस्त / सत्यपाल सहगल
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माँ की एकाकी चिंता / सत्यपाल सहगल
एक ही बेटा था माँ तुम्हारा वह भी बनना चाहता था कवि अपनी पूरी माँस मज्जा से तुम्हारा चिंतित होना स्वभाविक था जीवन भर तुमने उस खिड़की के खुलने का इंतज़ार किया था जो बेहतर मौसम की ओर खुलती है दिन,मास,वर्ष,तक तय किए थे तुमने तुमने उसे देखा कविता की आग में जलते हुए और… Continue reading माँ की एकाकी चिंता / सत्यपाल सहगल