मैं ने कल शब आसमाँ को गिरते देखा और सोचा अब ज़मीं और आसमाँ शायद मिलेंगे रात गुज़री और शफ़क़ फूली तो मैं ने चढ़ते सूरज की कलाई थाम कर उस से कहा भाई रूको तुम दो क़दम आगे बढ़े तो आसमाँ शायद गिरेगा ख़शम-गीं नज़रों से मुझ को देख कर सूरज ने आँखें फरे… Continue reading विसाल / सत्यपाल आनंद
Category: Satyapal Anand
ख़ून की ख़ुश्बू / सत्यपाल आनंद
ख़ून की ख़ुश्बू उड़ी तो ख़ुद-कुशी चीख़ी कि मैं ही ज़िंदगी हूँ आओ अब इस वस्ल की साअत को चूमो मर गई थी जीते-जी मैं और तुम जीने की ख़ातिर लम्हा लम्हा मर रहे थे ख़ुद मसीहा भी थे और बीमार भी थे (और ख़ुद अपनी जराहत के लिए तय्यार भी थे) आओ अब जी… Continue reading ख़ून की ख़ुश्बू / सत्यपाल आनंद
अगला सफ़र तवील नहीं / सत्यपाल आनंद
वो दिन भी आए हैं उस की सियाह ज़ुल्फ़ों में कपास खिलने लगी है, झलकती चाँदी के कशीदा तार चमकने लगे हैं बालों में वो दिन भी आए हैं सुर्ख़ ओ सपीद गालों में धनक का खेलना ममनूअ है, लबों पे फ़क़त गुलों की ताज़गी इक साया-ए-गुरेज़ाँ है वो भी दिन आए हैं उस के… Continue reading अगला सफ़र तवील नहीं / सत्यपाल आनंद