इंतज़ार-२ / सत्यानन्द निरुपम

तुम्हारी आमद तय थी थाप सीढ़ियों पर पड़ी किसी के पैरों की कानों ने कहा- यह तुम नहीं हो और तुम नहीं थी सोचता हूँ कानों का तुम्हारे पैर की थापों से जो परिचय है, वह क्या है… कुछ अनाम भी रहे जिंदगी में तो जिंदगी सफ़ेद हलके फूलों की भीनी-भीनी खुशबू-सी बनी रहती है… Continue reading इंतज़ार-२ / सत्यानन्द निरुपम

इंतज़ार-१ / सत्यानन्द निरुपम

कागा कई बार आज सुबह से मुंडेर पर बोल गया सूरज माथे से आखों में में उतर रहा मगर… कई बार यूँ लगा कि साइकिल की घंटी ही बजी हो दौड़कर देहरी तक पहुंचा तो शिरीष का पेड़ भी अकेला है ओसारे पर किसी की आमद तो नहीं दिखती सड़क का सूनापन आँखों में उतर… Continue reading इंतज़ार-१ / सत्यानन्द निरुपम

कुहूकिनी रे! / सत्यानन्द निरुपम

कुहूकिनी रे, बौराए देती है तेरी आवाज़. कहीं सेमल का फूल कोई चटखा है लाल तेरी हथेली का रंग मुझे याद आया है आम की बगिया उजियार भई होगी तेरी आँखों से छलके हैं कोई मूंगिया राग री गुलमोहर के फूल और पाकड़ की छाँव सखि पीपल-बरगद एक ठांव सखि याद है तुमको वो गांव… Continue reading कुहूकिनी रे! / सत्यानन्द निरुपम