हरी-हरी पत्तियाँ / संजीव बख़्शी

उसने दरवाज़ा खटखटाया और पूछा मेरा हाल जैसे-तैसे मैंने क़िताब का वह पन्ना खोल लिया जहाँ लिखा हुआ है— आकाश इस क़िताब में जहाँ पृथ्वी, हवा, पानी या अग्नि लिखा हुआ है ज़रूरत हो और खोल लूँ यह पन्ना इसलिए कचनार की पत्तियों को रख दिया है पन्नों के बीच दबा कर ।

गरियाबंद / संजीव बख़्शी

गरियाबंद के तहसील आफ़िस वाले शिवमंदिर में ट्रेज़री का बड़ा बाबू बिना नागा प्रतिदिन एक दिया जलाया करता मेरी स्मृतियों में वह हमेशा वहाँ दिया जलाता रहेगा चाहे आँधी हो या तूफ़ान । मेरी स्मृतियों में वह बड़ा बाबू कभी सेवानिवृत्त नहीं होगा।