कुछ तो मिला है आँखों के दरिया खंगाल के / संजय मिश्रा ‘शौक’

कुछ तो मिला है आँखों के दरिया खंगाल के लाया हूँ इनसे फिक्र के मोती निकाल के हमने भी ढूंढ ली है जमीं आसमान पर रखना है हमको पाँव बहुत देखभाल के बच्चा दिखा रहा था मुझे जिन्दगी का सच कागज़ की एक नाव को पानी में डाल के उम्मीद के दिए में भरा सांस… Continue reading कुछ तो मिला है आँखों के दरिया खंगाल के / संजय मिश्रा ‘शौक’

कई सूरज कई महताब रक्खे / संजय मिश्रा ‘शौक’

कई सूरज कई महताब रक्खे तेरी आँखों में अपने ख्वाब रक्खे हरीफों से भी हमने गुफ्तगू में अवध के सब अदब-आदाब रक्खे हमारे वास्ते मौजे-बला ने कई साहिल तहे-गिर्दाब रक्खे उभरने की न मोहलत दी किसी को चरागों ने अँधेरे दाब रक्खे