सड़क और जूतियाँ / संध्या पेडणेकर

कमसिन कम्मो ने बुढाती निम्मो के गले में बाँहें डाल कहा, ‘आख़िर….. उसने मुझे रख ही लिया!!!’ झटके से उसे अपने से अलग कर निम्मो बोली, ‘मुए को रसभरी ककड़ी मुफ्त की मिली….’ कम्मो की सपनीली आँखों ने कहा, ‘मैं उससे प्रेम करती हूँ…. और… मेरा प्रेम प्रतिदान नहीं माँगता…’ निम्मो बोली, ‘सही है लेकिन,… Continue reading सड़क और जूतियाँ / संध्या पेडणेकर

रिश्ते/ संध्या पेडणेकर

स्नेह नहीं शुष्क काम है लपलप वासना है क्षणभंगुर क्षण के बाद रीतनेवाली मतलब से जीतनेवाली रिश्तेदारी है खाली घड़े हैं अनंत पड़े हैं उनके अन्दर व्याप्त अन्धःकार उथला है पर पार नहीं पा सकते उससे अन्धःकार से परे कुछ नहीं उजास एक आभास है क्षितिज कोई नहीं केवल आकाश ही आकाश है