शहर के फ़ुट-पाथ पर कुछ चुभते मंज़र देखना / सईद अख्तर

शहर के फ़ुट-पाथ पर कुछ चुभते मंज़र देखना सर्द रातों में कभी घर से निकल कर देखना ये समझ लो तिश्नगी का दौर सर पर आ गया रात को ख़्वाबों में रह रह कर समुंदर देखना किस के हाथों में हैं पत्थर कौन ख़ाली हाथ है ये समझने के लिए शीशा सा बन कर देखना… Continue reading शहर के फ़ुट-पाथ पर कुछ चुभते मंज़र देखना / सईद अख्तर

ये किस कि हुस्न की जल्वागरी है / सईद अख्तर

ये किस कि हुस्न की जल्वागरी है जहाँ तक देखता हूँ रौशनी है अगर होते नहीं हस्सास पत्थर तिरी आँखों में ये कैसी नमी है यक़ीं उठ जाए अपने दस्त-ओ-पा से उसी का नाम लोगो ख़ुद-कुशी है अगर लम्हों की क़ीमत जान जाएँ हर इक लम्हे में पोशीदा सदी है तुझे भी मुँह के बल… Continue reading ये किस कि हुस्न की जल्वागरी है / सईद अख्तर