हो, रात के मुसाफिर तू भागना संभल के पोटली में तेरी हो आग ना संभल के – (२) रात के मुसाफिर…. चल तो तू पड़ा है, फासला बड़ा है जान ले अँधेरे के सर पे ख़ून चढ़ा है – (२) मुकाम खोज ले तू, मकान खोज ले तू इंसान के शहर में इंसान खोज ले… Continue reading रात के मुसाफिर / पीयूष मिश्रा
Category: Piyush Mishra
आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तको के झुण्ड / पीयूष मिश्रा
आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तकों के झुण्ड आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो, आन बान शान या की जान का हो दान आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!! मन करे सो प्राण दे, जो मन करे सो प्राण ले वही तो एक सर्वशक्तिमान है, विश्व की पुकार है ये भगवत… Continue reading आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तको के झुण्ड / पीयूष मिश्रा
उजला ही उजला / पीयूष मिश्रा
उजला ही उजला शहर होगा जिसमें हम-तुम बनाएँगे घर दोनों रहेंगे कबूतर से जिसमें होगा ना बाज़ों का डर मखमल की नाज़ुक दीवारें भी होंगी कोनों में बैठी बहारें भी होंगी खिड़की की चौखट भी रेशम की होगी चन्दन से लिपटी हाँ सेहन भी होगी सन्दल की ख़ुशबू भी टपकेगी छत से फूलों का दरवाज़ा… Continue reading उजला ही उजला / पीयूष मिश्रा
मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका / पीयूष मिश्रा
मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका ख़ूब जाना चाहता हूँ अमेरिका पी जाना चाहता हूँ अमेरिका मैं खा जाना चाहता हूँ अमेरिका …क्या क्या क्या है अमेरिका रे बोलो क्या क्या क्या है अमेरिका बस ख़ामख़्वाह है अमेरिका रे बोलो बस ख़ामख़्वाह है अमेरिका …सोने की खान है अमेरिका गोरी-गोरी रान है अमेरिका मेरा अरमान है… Continue reading मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका / पीयूष मिश्रा
इक बगल में चाँद होगा / पीयूष मिश्रा
इक बगल में चाँद होगा, इक बगल में रोटियाँ इक बगल में नींद होगी, इक बगल में लोरियाँ हम चाँद पे, हम चाँद पे, रोटी की चादर डाल कर सो जाएँगे और नींद से, और नींद से कह देंगे लोरी कल सुनाने आएँगे इक बगल में चाँद होगा, इक बगल में रोटियाँ इक बगल में… Continue reading इक बगल में चाँद होगा / पीयूष मिश्रा
चाँद गोरी के घर / पीयूष मिश्रा
चाँद गोरी के घर बारात ले के आ गोरी ओट में खड़ी है सौगात ले के आ जो कभी ना बोली गई वो बात ले के आ जो खिल चुके हों फूल से हालात ले के आ जिसमें बेकली भी हो, जिसमें शोखियाँ भी हों जिसमें झिलमिलाती रात की बेहोशियाँ भी हों जिसमें घोंसला भी… Continue reading चाँद गोरी के घर / पीयूष मिश्रा
जावेद का ख़त…लखनऊ से / पीयूष मिश्रा
लाहौर के उस पहले ज़िले के, दो परगना में पहुँचे रेशम गली के, दूजे कूचे के, चौथे मकाँ में पहुँचे कहते हैं जिसको, दूजा मुलुक उस, पाकिस्ताँ में पहुँचे लिखता हूँ ख़त मैं हिन्दोस्ताँ से, पहलू-ए-हुस्नाँ में पहुँचे ओ हुस्नाँ… मैं तो हूँ बैठा, ओ हुस्नाँ मेरी, यादों पुरानी में खोया पल पल को गिनता,… Continue reading जावेद का ख़त…लखनऊ से / पीयूष मिश्रा
मेरा रँग दे बसन्ती चोला / पीयूष मिश्रा
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, माई… मेरे चोले में तेरे माथे का पसीना है और थोड़ी सी तेरे आँचल की बूँदें हैं और थोड़ी सी है तेरे काँपते बूढ़े हाथों की गर्मी और थोड़ा सा है तेरी आँखों की सुर्खी का शोला इस शोले को जो देखा तो आज ये लाल तेरा बोला अरे बोला… Continue reading मेरा रँग दे बसन्ती चोला / पीयूष मिश्रा
सरफ़रोशी की तमन्ना / पीयूष मिश्रा
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए-क़ातिल में है वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है सरफ़रोशी की… देख फाँसी का ये फंदा ख़ौफ़ से है काँपता उफ़्फ़ कि जल्लादों की हालत भी बड़ी मुश्किल में है नर्म… Continue reading सरफ़रोशी की तमन्ना / पीयूष मिश्रा
पगड़ी सँभाल जट्टा / पीयूष मिश्रा
पगड़ी सँभाल जट्टा उड़ी चली जाए रे पगड़ी की गाँठ पे कोई हाथ ना लगाए रे मोड़ दे हवा के रुख़ को जो वो आड़े आए रे रोक दे उमड़ती रुत को आँख जो दिखाए रे सरकटी उम्मीदों के पल याद में सजाए रे ख़ून से सनी मिट्टी को भूल तो ना जाए रे देख… Continue reading पगड़ी सँभाल जट्टा / पीयूष मिश्रा