दुँहु ओर से फाग मड़ी उमड़ी जहँ श्री चढ़ि भीर ते भीर भिरी । कुच कँचुकी कोर छुये घरकै पजनेस फँदी फरकै ज्योँ चिरी । धधकी दै गुलाल की घूँघुरि मेँ धरी गोरी लला मुख मीढ़ी सिरी । उझकै झँपै कौँधे कढ़ै तड़िता तड़पै मनौ लाल घटा मे घिरी ।
दुँहु ओर से फाग मड़ी उमड़ी जहँ श्री चढ़ि भीर ते भीर भिरी । कुच कँचुकी कोर छुये घरकै पजनेस फँदी फरकै ज्योँ चिरी । धधकी दै गुलाल की घूँघुरि मेँ धरी गोरी लला मुख मीढ़ी सिरी । उझकै झँपै कौँधे कढ़ै तड़िता तड़पै मनौ लाल घटा मे घिरी ।