कुछ भी तो अब तन्त नहीं है- ऊपरवाले की लाठी में। दीमक चाट गयी है शायद- ये भी ऊपरवाला जाने, भुस में तिनगी जिसने डाली- वही जमालो खाला जाने। हम तो खड़े हुए हैं घर के पानीपत हल्दीघाटी में। दो ही दिन में बासी लगने लगते हैं परिवर्तन प्रगतिशील होकर आते घर-घर में अब ऋण।… Continue reading कुछ भी तो अब / नईम
Category: Naeem
लिख सकूँ तो (कविता) / नईम
लिख सकूँ तो— प्यार लिखना चाहता हूँ, ठीक आदमजात सा बेखौफ़ दिखना चाहता हूँ। थे कभी जो सत्य, अब केवल कहानी नर्मदा की धार सी निर्मल रवानी, पारदर्शी नेह की क्या बात करिए- किस क़दर बेलौस ये दादा भवानी। प्यार के हाथों घटी दर पर बज़ारों, आज बिकना चाहता हूँ। आपदा-से आये ये कैसे चरण… Continue reading लिख सकूँ तो (कविता) / नईम