मुक्ति-संग्राम अभी जारी है / कंवल भारती

मैं उस अतीत को अपने बहुत क़रीब पाता हूँ जिसे जिया था तुमने अपने दृढ-संकल्प और संघर्ष से। परिवर्तित किया था समय-चक्र को इस वर्तमान में। मैं उस अन्धी निशा की भयानक पीड़ा को / जब भी महसूस करता हूँ तुम्हारे विचारों के आन्दोलन में मुखर होता है एक रचनात्मक विप्लव मेरे रोम-रोम में। तुम… Continue reading मुक्ति-संग्राम अभी जारी है / कंवल भारती

बहिष्कार / कंवल भारती

आइए, इस नये वर्ष में बहिष्कार करें ब्राह्मणवाद, सामन्तवाद और पूँजीवाद का, इससे जन्मे जातिवाद और फ़ासीवाद का। बहिष्कार करें उस राजनीति का जो निभा रही है पुष्यमित्र की भूमिका। बहिष्कार करें उस चिन्तन का जिसके मूल में हिन्दुत्व का पुनरोत्थान शिवाजी और पेशवा शासन की स्थापना का लक्ष्य है, जिनमें अछूतों को कमर में… Continue reading बहिष्कार / कंवल भारती

शम्बूक / कंवल भारती

शम्बूक हम जानते हैं तुम इतिहास पुरुष नहीं हो वरना कोई लिख देता तुम्हें भी पूर्वजन्म का ब्राह्मण स्वर्ग की कामना से राम के हाथों मृत्यु का याचक लेकिन शम्बूक तुम इतिहास का सच हो राजतन्त्रों में जन्मती असंख्य दलित चेतनाओं का प्रतीक व्यवस्था और मानव के संघर्ष का विम्ब शम्बूक तुम हिन्दुत्व के ज्ञात… Continue reading शम्बूक / कंवल भारती

पिंजड़े का द्वार खोल देना / कंवल भारती

शायद ऐसा हो कि तुम्हारे हृदय में धधकी हो कोई ज्वाला भस्म करने की वर्जनाएँ कि तभी कोई बदली मर्यादा की बरस गयी होगी और तुम्हारा अन्तर्मन शीतल हो गया होगा शायद ऐसा हो की तुम्हरी अनुभूति अचानक हो गयी हो मार्मिक पढ़ या सुनकर कोई दलित हत्याकांड पीड़ित मनुष्यता का पक्ष तुम्हारी चेतना का… Continue reading पिंजड़े का द्वार खोल देना / कंवल भारती