होता तो वही जो कुछ क़िस्मत में लिखा होता तदबीर अगर करता कुछ रंज सिवा होता ऐ फ़लसफ़ा-ए-फ़ितरत कुछ बात न गर होती इस ख़ाक के पुतले को ये हुस्न अता होता अल्लाह की मर्ज़ी में फ़रयाद ये क्या माने जब बस न था कुछ अपना तो सब्र किया होता शर्मिंदा-ए-दरमान क्यूँ ख़ालिक़ ने किया… Continue reading होता तो वही जो कुछ क़िस्मत में लिखा होता / जगत मोहन लाल ‘रवाँ’
Category: Jagat Mohan Lal Ravan
गुल-ए-वीराना हूँ कोई नहीं है क़द्र-दाँ मेरा / जगत मोहन लाल ‘रवाँ’
गुल-ए-वीराना हूँ कोई नहीं है क़द्र-दाँ मेरा तू ही देख ऐ मेरे ख़ल्लाक हुस्न-ए-राएगाँ मेरा ये कह कर रूह निकली है तन-ए-आशिक़ से फ़ुर्कत में मुझे उजलत है बढ़ जाए न आगे कारवाँ मेरा हवा उस को उड़ा ले जाए अब या फूँक दे बिजली हिफ़ाजत कर नहीं सकता मेरी जब आशियाँ मेरा ज़मीं पर… Continue reading गुल-ए-वीराना हूँ कोई नहीं है क़द्र-दाँ मेरा / जगत मोहन लाल ‘रवाँ’