सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़्यालों में / बशीर बद्र

सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़्यालों में बस ज़रा वफ़ा कम है तेरे शहर वालों में पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा हम जवाब क्या देते, खो गये सवालों में रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा जैसे कोई चुटकी ले नर्म नर्म गालों में यूँ किसी की आँखों में सुबह… Continue reading सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़्यालों में / बशीर बद्र

वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है / बशीर बद्र

वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं उसे ज़माने ने… Continue reading वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है / बशीर बद्र

हर बात में महके हुए जज़्बात की ख़ुश्बू / बशीर बद्र

हर बात में महके हुए जज़्बात की ख़ुशबू याद आई बहुत पहली मुलाक़ात की ख़ुशबू छुप-छुप के नई सुबह का मुँह चूम रही है इन रेशमी ज़ुल्फ़ों में बसी रात की ख़ुशबू मौसम भी हसीनों की अदा सीख गए हैं बादल हैं छुपाये हुए बरसात की ख़ुशबू घर कितने ही छोटे हों, घने पेड़ मिलेंगे… Continue reading हर बात में महके हुए जज़्बात की ख़ुश्बू / बशीर बद्र

पत्थर के जिगर वालों ग़म में वो रवानी है / बशीर बद्र

पत्थर के जिगर वालों ग़म में वो रवानी है ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है इस में तेरी ज़ुल्फ़ों की बे-रब्त कहानी है एक ज़हन-ए-परेशाँ में वो फूल सा चेहरा है पत्थर की हिफ़ाज़त में शीशे की जवानी है क्यों चांदनी रातों में दरिया… Continue reading पत्थर के जिगर वालों ग़म में वो रवानी है / बशीर बद्र

इस तरह साथ निभना है दुश्वार सा / बशीर बद्र

इस तरह साथ निभना है दुश्वार सा तू भी तलवार सा मैं भी तलवार सा अपना रंगे ग़ज़ल उसके रुखसार सा दिल चमकने लगा है रुख ए यार सा अब है टूटा सा दिल खुद से बेज़ार सा इस हवेली में लगता था दरबार सा खूबसूरत सी पैरों में ज़ंजीर हो घर में बैठा रहूँ… Continue reading इस तरह साथ निभना है दुश्वार सा / बशीर बद्र

सुनसान रास्तों से सवारी न आएगी / बशीर बद्र

सुनसान रास्तों से सवारी न आएगी अब धूल से अटी हुई लारी न आएगी छप्पर के चायख़ाने भी अब ऊंघने लगे पैदल चलो के कोई सवारी न आएगी तहरीरों गुफ़्तगू में किसे ढूँढ़ते हैं लोग तस्वीर में भी शक्ल हमारी न आएगी सर पर ज़मीन लेके हवाओं के साथ जा आहिस्ता चलने वाले की बारी… Continue reading सुनसान रास्तों से सवारी न आएगी / बशीर बद्र

उनको आईना बनाया / बशीर बद्र

उसको आईना बनाया, धूप का चेहरा मुझे रास्ता फूलों का सबको, आग का दरिया मुझे चाँद चेहरा, जुल्फ दरिया, बात खुशबू, दिल चमन इन तुम्हें देकर ख़ुदा ने दे दिया क्या-क्या मुझे जिस तरह वापस कोई ले जाए अपनी छुट्टियाँ जाने वाला इस तरह से कर गया तन्हा मुझे तुमने देखा है किसी मीरा को… Continue reading उनको आईना बनाया / बशीर बद्र

कोई लश्कर है के बढ़ते हुए ग़म आते हैं / बशीर बद्र

कोई लश्कर है के बढ़ते हुए ग़म आते हैं शाम के साये बहुत तेज़ क़दम आते हैं दिल वो दरवेश है जो आँख उठाता ही नहीं इस के दरवाज़े पे सौ अहले करम आते हैं मुझ से क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिये कभी सोने कभी चाँदी के क़लम आते हैं मैं ने… Continue reading कोई लश्कर है के बढ़ते हुए ग़म आते हैं / बशीर बद्र

सँवार नोक पलक अबरूओं में ख़म कर दे / बशीर बद्र

सँवार नोक पलक अबरूओं में ख़म कर दे गिरे पड़े हुए लफ्ज़ों को मोहतरम कर दे ग़ुरूर उस पे बहुत सजता है मगर कह दो इसी में उसका भला है ग़ुरूर कम कर दे यहाँ लिबास, की क़ीमत है आदमी की नहीं मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे चमकने वाली है तहरीर मेरी… Continue reading सँवार नोक पलक अबरूओं में ख़म कर दे / बशीर बद्र

नारियल के दरख़्तों की पागल हवा / बशीर बद्र

नारियल के दरख़्तों की पागल हवा खुल गये बादबाँ लौट जा लौट जा साँवली सरज़मीं पर मैं अगले बरस फूल खिलने से पहले ही आ जाऊँगा गर्म कपड़ों का सन्दूक़ मत खोलना वरना यादों की काफ़ूर जैसी महक ख़ून में आग बन कर उतर जायेगी सुबह तक ये मकाँ ख़ाक हो जायेगा लान में एक… Continue reading नारियल के दरख़्तों की पागल हवा / बशीर बद्र