Bashir Badr Archive
सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़्यालों में बस ज़रा वफ़ा कम है तेरे शहर वालों में पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा हम जवाब क्या देते, खो गये सवालों में रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह …
वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से ख़ुदा किसी …
हर बात में महके हुए जज़्बात की ख़ुशबू याद आई बहुत पहली मुलाक़ात की ख़ुशबू छुप-छुप के नई सुबह का मुँह चूम रही है इन रेशमी ज़ुल्फ़ों में बसी रात की ख़ुशबू मौसम भी हसीनों की अदा सीख गए हैं …
पत्थर के जिगर वालों ग़म में वो रवानी है ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है इस में तेरी ज़ुल्फ़ों की बे-रब्त कहानी है एक ज़हन-ए-परेशाँ में वो फूल सा …
इस तरह साथ निभना है दुश्वार सा तू भी तलवार सा मैं भी तलवार सा अपना रंगे ग़ज़ल उसके रुखसार सा दिल चमकने लगा है रुख ए यार सा अब है टूटा सा दिल खुद से बेज़ार सा इस हवेली …
सुनसान रास्तों से सवारी न आएगी अब धूल से अटी हुई लारी न आएगी छप्पर के चायख़ाने भी अब ऊंघने लगे पैदल चलो के कोई सवारी न आएगी तहरीरों गुफ़्तगू में किसे ढूँढ़ते हैं लोग तस्वीर में भी शक्ल हमारी …
उसको आईना बनाया, धूप का चेहरा मुझे रास्ता फूलों का सबको, आग का दरिया मुझे चाँद चेहरा, जुल्फ दरिया, बात खुशबू, दिल चमन इन तुम्हें देकर ख़ुदा ने दे दिया क्या-क्या मुझे जिस तरह वापस कोई ले जाए अपनी छुट्टियाँ …
कोई लश्कर है के बढ़ते हुए ग़म आते हैं शाम के साये बहुत तेज़ क़दम आते हैं दिल वो दरवेश है जो आँख उठाता ही नहीं इस के दरवाज़े पे सौ अहले करम आते हैं मुझ से क्या बात लिखानी …
सँवार नोक पलक अबरूओं में ख़म कर दे गिरे पड़े हुए लफ्ज़ों को मोहतरम कर दे ग़ुरूर उस पे बहुत सजता है मगर कह दो इसी में उसका भला है ग़ुरूर कम कर दे यहाँ लिबास, की क़ीमत है आदमी …
नारियल के दरख़्तों की पागल हवा खुल गये बादबाँ लौट जा लौट जा साँवली सरज़मीं पर मैं अगले बरस फूल खिलने से पहले ही आ जाऊँगा गर्म कपड़ों का सन्दूक़ मत खोलना वरना यादों की काफ़ूर जैसी महक ख़ून में …