जो इधर से जा रहा है वही मुझ पर मेहरबां है / बशीर बद्र

जो इधर से जा रहा है वही मुझ पे मेहरबाँ है कभी आग पासबाँ है, कभी धूप सायबाँ है बड़ी आरज़ू थी मुझसे कोई ख़ाक रो के कहती उतर आ मेरी ज़मीं पर तू ही मेरा आसमाँ है मैं इसी गुमां पे बरसों बड़ा मुतमईन रहा हूँ तेरा ज़िस्म बेतग़ैयुर मेरा प्यार जाविदाँ है कभी… Continue reading जो इधर से जा रहा है वही मुझ पर मेहरबां है / बशीर बद्र

हर रोज़ हमें मिलना हर रोज़ बिछड़ना है / बशीर बद्र

हर रोज़ हमें मिलना हर रोज़ बिछड़ना है मैं रात की परछाईं तू सुबह का चेहरा है आलम का ये सब नक़शा बच्चों का घरौंदा है इक ज़र्रे के कब्ज़े में सहमी हुई दुनिया है हम-राह चलो मेरे या राह से हट जाओ दीवार के रोके से दरिया कभी रुकता है

आया ही नहीं हम को आहिस्ता गुज़र जाना / बशीर बद्र

आया ही नहीं हमको आहिस्ता गुज़र जाना शीशे का मुक़द्दर है टकरा के बिखर जाना तारों की तरह शब के सीने में उतर जाना आहट न हो क़दमों की इस तरह गुज़र जाना नश्शे में सँभलने का फ़न यूँ ही नहीं आता इन ज़ुल्फ़ों से सीखा है लहरा के सँवर जाना भर जायेंगे आँखों में… Continue reading आया ही नहीं हम को आहिस्ता गुज़र जाना / बशीर बद्र

फूल सा कुछ कलाम और सही / बशीर बद्र

फूल सा कुछ कलाम और सही एक ग़ज़ल उस के नाम और सही उस की ज़ुल्फ़ें बहुत घनेरी हैं एक शब का क़याम और सही ज़िन्दगी के उदास क़िस्से में एक लड़की का नाम और सही कुर्सियों को सुनाइये ग़ज़लें क़त्ल की एक शाम और सही कँपकँपाती है रात सीने में ज़हर का एक जाम… Continue reading फूल सा कुछ कलाम और सही / बशीर बद्र

ख़ुश रहे या बहुत उदास रहे / बशीर बद्र

ख़ुश रहे या बहुत उदास रहे ज़िन्दगी तेरे आस पास रहे चाँद इन बदलियों से निकलेगा कोई आयेगा दिल को आस रहे हम मुहब्बत के फूल हैं शायद कोई काँटा भी आस पास रहे मेरे सीने में इस तरह बस जा मेरी सांसों में तेरी बास रहे आज हम सब के साथ ख़ूब हँसे और… Continue reading ख़ुश रहे या बहुत उदास रहे / बशीर बद्र

हम को भी अपनी मौत का पूरा यक़ीन है / बशीर बद्र

हम को भी अपनी मौत का पूरा यक़ीन है पर दुश्मनों के मुल्क में एक महजबीन है सर पर खड़े हैं चाँद-सितारे बहुत मगर इन्सान का जो बोझ उठा ले ज़मीन है ये आख़री चराग़ उसी को बुझाने दो इस बस्ती में वो सबसे ज़ियादा हसीन है तकिये के नीचे रखता है तस्वीर की किताब… Continue reading हम को भी अपनी मौत का पूरा यक़ीन है / बशीर बद्र

अपने पहाड़ ग़ैर के गुलज़ार हो गए / बशीर बद्र

अपने पहाड़ ग़ैर के गुलज़ार हो गये वे भी हमारी राह की दीवार हो गये फल पक चुका है शाख़ पर गर्मी की धूप में हम अपने दिल की आग में तैयार हो गये हम पहले नर्म पत्तों की इक शाख़ थे मगर काटे गये हैं इतने कि तलवार हो गये बाज़ार में बिकी हुई… Continue reading अपने पहाड़ ग़ैर के गुलज़ार हो गए / बशीर बद्र

हमारा दर्द हमारी दुखी नवा से लड़े / बशीर बद्र

हमारा दर्द हमारी दुखी नवा से लड़े सुलगती आग कभी सरफिरी हवा से लड़े मैं जानता हूँ कि अंज़ाम कार क्या होगा अकेला पत्ता अगर रात भर हवा से लड़े समझना बादलों में घिर गया है मेरा जहाज़ लहू में तर कोई ताइर अगर हवा से लड़े मेरे अज़ीज़ मुझे क़त्ल कर के फेंक आते… Continue reading हमारा दर्द हमारी दुखी नवा से लड़े / बशीर बद्र

इस ज़ख्मी प्यासे को इस तरह पिला देना / बशीर बद्र

इस ज़ख़्मी प्यासे को इस तरह पिला देना पानी से भरा शीशा पत्थर पे गिरा देना इन पत्तों ने गर्मी भर साये में हमें रक्खा अब टूट के गिरते हैं बेहतर है जला देना छोटे क़दो-क़ामत पर मुमकिन है हँसे जंगल एक पेड़ बहुत लम्बा है उसको गिरा देना मुमकिन है कि इस तरह वहशत… Continue reading इस ज़ख्मी प्यासे को इस तरह पिला देना / बशीर बद्र

हमसे मुसाफ़िरों का सफ़र इंतज़ार है / बशीर बद्र

हमसे मुसाफ़िरों का सफ़र इन्तिज़ार है सब खिड़कियों के सामने लम्बी क़तार है बाँसों के जंगलों में वो ही तेज़ बू मिली जिनका हमारी बस्तियों में कारोबार है ग़ुब्बारा फट रहा है हवाओं के ज़ोर से दुनिया को अपनी मौत का अब इन्तिज़ार है किस रोशनी के शहर से गुज़रे हैं तेज़ रौ नीले समन्दरों… Continue reading हमसे मुसाफ़िरों का सफ़र इंतज़ार है / बशीर बद्र