जब सहर चुप हो, हँसा लो हमको / बशीर बद्र

जब सहर चुप हो, हँसा लो हमको जब अन्धेरा हो, जला लो हमको हम हक़ीक़त हैं, नज़र आते हैं दास्तानों में छुपा लो हमको ख़ून का काम रवाँ रहना है जिस जगह चाहे बहा लो हमको दिन न पा जाए कहीं शब का राज़ सुबह से पहले उठा लो हमको दूर हो जाएंगे सूरज की… Continue reading जब सहर चुप हो, हँसा लो हमको / बशीर बद्र

किस देश में ये क़ाफलए वक़्त रुका है / बशीर बद्र

किस देश में ये क़ाफलए वक़्त रुका है आरिज़ के उजाले हैं न ज़ुल्फों की घटा है कुछ मेरी निगाहों के तले धुंध बहोत है कुछ जश्ने-चरागाँ से अन्धेरा भी बढ़ा है मैं ने तिरी बातों को कभी झूठ कहा था उस जुर्म पे हर झूठ को सच मान लिया है ऐ शोख़ गिज़ालो, यहाँ… Continue reading किस देश में ये क़ाफलए वक़्त रुका है / बशीर बद्र

तुम ने देखा किधर गये तारे / बशीर बद्र

तुम ने देखा किधर गये तारे किसकी आवाज़ पर गये तारे ये कहीं शहर-ए-आरज़ू तो नहीं चलते-चलते ठहर गये तारे कब से है आँख गोद फैलाये झील में क्यों उतर गये तारे दूर तक नक़्श-ए-पावे नूर नहीं जाने किस रह गुज़र गये तारे उफ़ ये साये अन्धेरे सन्नाटे जाने किस के नगर गये तारे आज… Continue reading तुम ने देखा किधर गये तारे / बशीर बद्र

धूप खेतों में बिखर कर ज़ाफ़रानी हो गई / बशीर बद्र

धूप खेतों में बिखर कर ज़ाफ़रानी हो गई सुरमई अश्जार की पोशाक धानी हो गई जैसे-जैसे उम्र भीगी सादा-पोशी कम हुई सूट पीला, शर्ट नीली, टाई धानी हो गई उसकी उर्दू में भी अबकी मग़रिबी लहज़ा मिला काले बालों की भी रंगत ज़ाफ़रानी हो गई साँप के बोसे में कैसा प्यार था कि फ़ाख़्ता फड़फड़ा… Continue reading धूप खेतों में बिखर कर ज़ाफ़रानी हो गई / बशीर बद्र

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा / बशीर बद्र

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ अगर वो आया… Continue reading अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा / बशीर बद्र

रेत भरी है इन आँखों में, आँसू से तुम धो लेना / बशीर बद्र

रेत भरी है इन आँखों में, आँसू से तुम धो लेना कोई सूखा पेड़ मिले तो उससे लिपट कर रो लेना इसके बाद बहुत तन्हा हो जैसे जंगल का रस्ता जो भी तुमसे प्यार से बोले, साथ उसी के हो लेना कुछ तो रेत की प्यास बुझाओ, जनम-जनम की प्यासी है साहिल पर चलने से… Continue reading रेत भरी है इन आँखों में, आँसू से तुम धो लेना / बशीर बद्र

कोई हाथ नहीं ख़ाली है / बशीर बद्र

कोई हाथ नहीं ख़ाली है बाबा ये नगरी कैसी है कोई किसी का दर्द न जाने सबको अपनी अपनी पड़ी है उसका भी कुछ हक़ है आख़िर उसने मुझसे नफ़रत की है जैसे सदियाँ बीत चुकी हों फिर भी आधी रात अभी है कैसे कटेगी तन्हा तन्हा इतनी सारी उम्र पड़ी है हम दोनों की… Continue reading कोई हाथ नहीं ख़ाली है / बशीर बद्र

सर दर्द जैसे नींद के सीने पे सो गया / बशीर बद्र

सर दर्द जैसे नींद के सीने पे सो गया इन फूल जैसे हाथों ने माथा जुँही छुआ इक लड़की एक लड़के के काँधे पे सोई थी मैं उजली धुँधली यादों के कुहरे में खो गया सन्नाटे आए, दरज़ों में झाँका, चले गए गर्मी की छुट्टियाँ थी, वहाँ कोई भी न था टहनी गुलाब की मिरे… Continue reading सर दर्द जैसे नींद के सीने पे सो गया / बशीर बद्र

आँसुओं से धुली ख़ुशी की तरह / बशीर बद्र

आंसुओं से धुली ख़ुशी की तरह रिश्ते होते हैं शायरी की तरह जब कभी बादलों में घिरता है चाँद लगता है आदमी की तरह किसी रोज़न किसी दरीचे से सामने आओ रोशनी की तरह सब नज़र का फ़रेब है वर्ना कोई होता नहीं किसी की तरह खूबसूरत, उदास, ख़ौफ़जदा वो भी है बीसवीं सदी की… Continue reading आँसुओं से धुली ख़ुशी की तरह / बशीर बद्र

गज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखायेंगे / बशीर बद्र

गज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखायेंगे रोयेंगे बहुत, लेकिन आँसू नहीं आयेंगे कह देना समन्दर से, हम ओस के मोती हैं दरिया की तरह तुझ से मिलने नहीं आयेंगे वो धूप के छप्पर हों या छाँव की दीवारें अब जो भी उठायेंगे, मिलजुल के उठायेंगे जब कोई साथ न दे, आवाज़ हमें देना हम… Continue reading गज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखायेंगे / बशीर बद्र