नन्ही सचाई / अशोक चक्रधर

एक डॉक्टर मित्र हमारे स्वर्ग सिधारे। असमय मर गए, सांत्वना देने हम उनके घर गए। उनकी नन्ही-सी बिटिया भोली-नादान थी, जीवन-मृत्यु से अनजान थी। हमेशा की तरह द्वार पर आई, देखकर मुस्कुराई। उसकी नन्ही-सचाई दिल को लगी बेधने, बोली— अंकल ! भगवान जी बीमार हैं न पापा गए हैं देखने।

दया / अशोक चक्रधर

भूख में होती है कितनी लाचारी, ये दिखाने के लिए एक भिखारी, लॉन की घास खाने लगा, घर की मालकिन में दया जगाने लगा। दया सचमुच जागी मालकिन आई भागी-भागी- क्या करते हो भैया ? भिखारी बोला भूख लगी है मैया। अपने आपको मरने से बचा रहा हूं, इसलिए घास ही चबा रहा हूं। मालकिन… Continue reading दया / अशोक चक्रधर

चुटपुटकुले (कविता) / अशोक चक्रधर

चुटपुटकुले ये चुटपुटकुले हैं, हंसी के बुलबुले हैं। जीवन के सब रहस्य इनसे ही तो खुले हैं, बड़े चुलबुले हैं, ये चुटपुटकुले हैं। माना कि कम उम्र होते हंसी के बुलबुले हैं, पर जीवन के सब रहस्य इनसे ही तो खुले हैं, ये चुटपुटकुले हैं। ठहाकों के स्त्रोत कुछ यहां कुछ वहां के, कुछ खुद… Continue reading चुटपुटकुले (कविता) / अशोक चक्रधर

फिर कभी / अशोक चक्रधर

एक गुमसुम मैना है अकेले में गाती है राग बागेश्री । तोता उससे कहे कुछ सुनाओ तो ज़रा तो चोंच चढ़ाकर कहती है फिर कभी गाऊँगी जी ।

देह नृत्यशाला / अशोक चक्रधर

अँधेरे उस पेड़ के सहारे मेरा हाथ पेड़ की छाल के अन्दर ऊपर की ओर कोमल तव्चा पर थरथराते हुए रेंगा और जा पहुँचा वहाँ जहाँ एक शाख निकली थी । काँप गई पत्तियाँ काँप गई टहनी काँप गया पूरा पेड़ । देह नृत्यशाला आलाप-जोड़-झाला ।

चल दी जी, चल दी / अशोक चक्रधर

मैंने कहा चलो उसने कहा ना मैंने कहा तुम्हारे लिए खरीदभर बाज़ार है उसने कहा बन्द मैंने पूछा क्यों उसने कहा मन मैंने कहा न लगने की क्या बात है उअसने कहा बातें करेंगे यहीं मैंने कहा नहीं, चलो कहीं झुंझलाई क्या-आ है ? मैनें कहा कुर्ता ख़रीदना है अपने लिए । चल दी जी,… Continue reading चल दी जी, चल दी / अशोक चक्रधर

किधर गई बातें / अशोक चक्रधर

चलती रहीं चलती रहीं चलती रहीं बातें यहाँ की, वहाँ की इधर की, उधर की इसकी, उसकी जने किस-किस की, कि एकएक सिर्फ़ उसकी आँखों को देखा मैंने उसने देखा मेरा देखना । और… तो फिर… किधर गईं बातें, कहाँ गईं बातें ?

नख़रेदार / अशोक चक्रधर

भूख लगी है चलो, कहीं कुछ खाएं । देखता रहा उसको खाते हुए लगती है कैसी, देखती रही मुझको खाते हुए लगता हूँ कैसा । नख़रेदार पानी पिया नख़रेदार सिगरेट ढाई घंटे बैठ वहाँ बाहर निकल आए ।

पहले पहले / अशोक चक्रधर

मुझे याद है वह जज़्बाती शुरुआत की पहली मुलाक़ात जब सोते हुए उसके बाल अंगुल भर दूर थे लेकिन उन दिनों मेरे हाथ कितने मज़बूर थे ?

चेतन जड़ / अशोक चक्रधर

प्यास कुछ और बढ़ी और बढ़ी । बेल कुछ और चढ़ी और चढ़ी । प्यास बढ़ती ही गई, बेल चढ़ती ही गई । कहाँ तक जाओगी बेलरानी पानी ऊपर कहाँ है ? जड़ से आवाज़ आई– यहाँ है, यहाँ है ।