मंत्रिमंडल विस्तार / अशोक चक्रधर

आप तो जानते हैं सपना जब आता है तो अपने साथ लाता है भूली-भटकी भूखों का भोलाभाला भंडारा। जैसे हमारे केन्द्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार हे करतार ! सत्तर मंत्रियों के बाद भी लंबी कतार। अटल जी बोले— अशोक ! कैसे लगाऊं रोक ? इतने सारे मंत्री हो गए, और जो नहीं हो पाए वो दसियों… Continue reading मंत्रिमंडल विस्तार / अशोक चक्रधर

गति का कुसूर / अशोक चक्रधर

क्या होता है कार में- पास की चीज़ें पीछे दौड़ जाती है तेज़ रफ़तार में! और ये शायद गति का ही कुसूर है कि वही चीज़ देर तक साथ रहती है जो जितनी दूर है।

मतपेटी से राजा / अशोक चक्रधर

भूतपूर्व दस्यू सुन्दरी, संसद कंदरा कन्दरी ! उन्होंने एक बात कही, खोपड़ी चकराए बिना नहीं रही। माथा ठनका, क्योंकि वक्तव्य था उनका सुन लो इस चंबल के बीहड़ों की बेटी से राजा पहले पैदा होता था रानी के पेट से अब पैदा होता है मतपेटी से। बात चुस्त है, सुनने में भी दुरुस्त है, लेकिन… Continue reading मतपेटी से राजा / अशोक चक्रधर

खींचो खींचो / अशोक चक्रधर

कौन कह मरा है कि कैमरा हो हमेशा तुम्हारे पास, आंखों से ही खींच लो समंदर की लहरें पेड़ों की पत्तियां मैदान की घास !

परदे हटा के देखो / अशोक चक्रधर

ये घर है दर्द का घर, परदे हटा के देखो, ग़म हैं हंसी के अंदर, परदे हटा के देखो। लहरों के झाग ही तो, परदे बने हुए हैं, गहरा बहुत समंदर, परदे हटा के देखो। चिड़ियों का चहचहाना, पत्तों का सरसराना, सुनने की चीज़ हैं पर, परदे हटा के देखो। नभ में उषा की रंगत,… Continue reading परदे हटा के देखो / अशोक चक्रधर

हंसना-रोना / अशोक चक्रधर

जो रोया सो आंसुओं के दलदल में धंस गया, और कहते हैं, जो हंस गया वो फंस गया अगर फंस गया, तो मुहावरा आगे बढ़ता है कि जो हंस गया, उसका घर बस गया। मुहावरा फिर आगे बढ़ता है जिसका घर बस गया, वो फंस गया ! ….और जो फंस गया, वो फिर से आंसुओं… Continue reading हंसना-रोना / अशोक चक्रधर

ख़लीफ़ा की खोपड़ी / अशोक चक्रधर

दर्शकों का नया जत्था आया गाइड ने उत्साह से बताया— ये नायाब चीज़ों का अजायबघर है, कहीं परिन्दे की चोंच है कहीं पर है। ये देखिए ये संगमरमर की शिला एक बहुत पुरानी क़बर की है, और इस पर जो बड़ी-सी खोपड़ी रखी है न, ख़लीफा बब्बर की है। तभी एक दर्शक ने पूछा— और… Continue reading ख़लीफ़ा की खोपड़ी / अशोक चक्रधर

पहला क़दम / अशोक चक्रधर

अब जब विश्वभर में सबके सब, सभ्य हैं, प्रबुद्ध हैं तो क्यों करते युद्ध हैं ? कैसी विडंबना कि आधुनिक कहाते हैं, फिर भी देश लड़ते हैं लहू बहाते हैं। एक सैनिक दूसरे को बिना बात मारता है, इससे तो अच्छी समझौता वार्ता है। एक दूसरे के समक्ष बैठ जाएं दोनों पक्ष बाचतीत से हल… Continue reading पहला क़दम / अशोक चक्रधर

नेता जी लगे मुस्कुराने / अशोक चक्रधर

एक महा विद्यालय में नए विभाग के लिए नया भवन बनवाया गया, उसके उद्घाटनार्थ विद्यालय के एक पुराने छात्र लेकिन नए नेता को बुलवाया गया। अध्यापकों ने कार के दरवाज़े खोले नेती जी उतरते ही बोले— यहां तर गईं कितनी ही पीढ़ियां, अहा ! वही पुरानी सीढ़ियां ! वही मैदान वही पुराने वृक्ष, वही कार्यालय… Continue reading नेता जी लगे मुस्कुराने / अशोक चक्रधर

कितनी रोटी / अशोक चक्रधर

गांव में अकाल था, बुरा हाल था। एक बुढ़ऊ ने समय बिताने को, यों ही पूछा मन बहलाने को— ख़ाली पेट पर कितनी रोटी खा सकते हो गंगानाथ ? गंगानाथ बोला— सात ! बुढ़ऊ बोला— गलत ! बिलकुल ग़लत कहा, पहली रोटी खाने के बाद पेट खाली कहां रहा। गंगानाथ, यही तो मलाल है, इस… Continue reading कितनी रोटी / अशोक चक्रधर