पचास साल का इंसान / अशोक चक्रधर

पचास साल का इंसान न बूढ़ा होता है न जवान न वो बच्चा होता है न बच्चों की तरह कच्चा होता है। वो पके फलों से लदा एक पेड़ होता है, आधी उम्र पार करने के कारण अधेड़ होता है। पचास साल का इंसान चुका हुआ नहीं होता जो उसे करना है कर चुका होता… Continue reading पचास साल का इंसान / अशोक चक्रधर

बताइए अब क्या करना है / अशोक चक्रधर

कि बौड़म जी ने एक ही शब्द के जरिए पिछले पांच दशकों की झनझनाती हुई झांकी दिखाई। पहले सदाचरण फिर आचरण फिर चरण फिर रण और फिर न ! यही तो है पांच दशकों का सफ़र न ! मैंने पूछा- बौड़म जी, बताइए अब क्या करना है ? वे बोले- करना क्या है इस बचे… Continue reading बताइए अब क्या करना है / अशोक चक्रधर

पांच सीढ़ियां / अशोक चक्रधर

बौड़म जी स्पीच दे रहे थे मोहल्ले में, लोग सुन ही नहीं पा रहे थे हो-हल्ले में। सुनिए सुनिए ध्यान दीजिए, अपने कान मुझे दान दीजिए। चलिए तालियां बजाइए, बजाइए, बजाइए समारोह को सजाइए ! नहीं बजा रहे कोई बात नहीं, जो कुछ है वो अकस्मात नहीं। सब कुछ समझ में आता है, फिर बौड़म… Continue reading पांच सीढ़ियां / अशोक चक्रधर

ये बात मैंने आपको इसलिए बताई / अशोक चक्रधर

कि इन कविताओं में एन.डी.टी.वी. की डिमाण्ड पर माल किया गया है सप्लाई। इस सकंलन में ऐसी बहुत सी कविताएं नहीं हैं जो उन्होंने परदे पर दिखाईं, लेकिन ऐसी कई हैं जो अब तक नहीं आईं। कुछ बढ़ाईं, कुछ काटीं, कुछ छीली, कुछ छांटीं। कुछ में परिहास है, कुछ में उपहास है कुछ में शुद्ध… Continue reading ये बात मैंने आपको इसलिए बताई / अशोक चक्रधर

पुस्तक की भूमिका / अशोक चक्रधर

देते हुए एन.डी.टी.वी. का हवाला, एक दिन घर पर आई रेवती नाम की बाला। प्यारी सी उत्साही कन्या शहंशाही काठी में स्वनामधन्या। यानि करुणा-मानवता की निर्मल नदी, विचारों में अग्रणी इक्कीसवीं सदी। नए प्रस्ताव की झुलाते हुए झोली, रेवती बोली- हमारे ‘गुड मार्निंग इंडिया’ में एक सैक्शन है ‘फ़नीज़’, आप उसमें जोक्स जैसी कुछ कविताएं… Continue reading पुस्तक की भूमिका / अशोक चक्रधर

ओज़ोन लेयर / अशोक चक्रधर

पति-पत्नी में बिलकुल नहीं बनती है, बिना बात ठनती है। खिड़की से निकलती हैं आरोपों की बदबूदार हवाएं, नन्हे पौधों जैसे बच्चे खाद-पानी का इंतज़ाम किससे करवाएं ? होते रहते हैं शिकवे-शिकायतों के कंटीले हमले, सूख गए हैं मधुर संबंधों के गमले। नाली से निकलता है घरेलू पचड़ों के कचरों का मैला पानी, नीरस हो… Continue reading ओज़ोन लेयर / अशोक चक्रधर

रिक्शेवाला / अशोक चक्रधर

आवाज़ देकर रिक्शेवाले को बुलाया वो कुछ लंगड़ाता हुआ आया। मैंने पूछा— यार, पहले ये तो बताओगे, पैर में चोट है कैसे चलाओगे ? रिक्शेवाला कहता है— बाबू जी, रिक्शा पैर से नहीं पेट से चलता है।

डैमोक्रैसी / अशोक चक्रधर

पार्क के कोने में घास के बिछौने पर लेटे-लेटे हम अपनी प्रेयसी से पूछ बैठे— क्यों डियर ! डैमोक्रैसी क्या होती है ? वो बोली— तुम्हारे वादों जैसी होती है ! इंतज़ार में बहुत तड़पाती है, झूठ बोलती है सताती है, तुम तो आ भी जाते हो, ये कभी नहीं आती है ! एक विद्वान… Continue reading डैमोक्रैसी / अशोक चक्रधर

जिज्ञासा / अशोक चक्रधर

एकाएक मंत्री जी कोई बात सोचकर मुस्कुराए, कुछ नए से भाव उनके चेहरे पर आए। उन्होंने अपने पी.ए. से पूछा— क्यों भई, ये डैमोक्रैसी क्या होती है ? पी.ए. कुछ झिझका सकुचाया, शर्माया। -बोलो, बोलो डैमोक्रैसी क्या होती है ? -सर, जहां जनता के लिए जनता के द्वारा जनता की ऐसी-तैसी होती है, वहीं डैमोक्रैसी… Continue reading जिज्ञासा / अशोक चक्रधर

रोटी का सवाल / अशोक चक्रधर

कितनी रोटी गाँव में अकाल था, बुरा हाल था। एक बुढ़ऊ ने समय बिताने को, यों ही पूछा मन बहलाने को- ख़ाली पेट पर कितनी रोटी खा सकते हो गंगानाथ ? गंगानाथ बोला- सात ! बुढ़ऊ बोला- ग़लत ! बिलकुल ग़लत कहा, पहली रोटी खाने के बाद पेट ख़ाली कहाँ रहा। गंगानाथ, यही तो मलाल… Continue reading रोटी का सवाल / अशोक चक्रधर