रुको बाबा / अंजना भट्ट

जख़्म अभी हरे हैं अम्मा मत कुरेदो इन्हें पक जाने दो लल्ली के बापू की कच्ची दारू जैसे पक जाया करती है भट्टी में। दाग़ अभी गहरे हैं बाबा मत कुरेदो इन्हें सूख जाने दो रामकली के जूड़े में लगे फूल की तरह। जख़्म अभी गहरे हैं बाबा छिपकली की कटी पूंछ की तरह हो… Continue reading रुको बाबा / अंजना भट्ट

इच्छाओं का घर / अंजना भट्ट

इच्छाओं का घर— कहाँ है? क्या है मेरा मन या मस्तिष्क या फिर मेरी सुप्त चेतना? इच्छाएं हैं भरपूर, जोरदार और कुछ मजबूर. पर किसने दी हैं ये इच्छाएं? क्या पिछले जनमों से चल कर आयीं या शायद फिर प्रभु ने ही हैं मन में समाईं? पर क्यों हैं और क्या हैं ये इच्छाएं? क्या… Continue reading इच्छाओं का घर / अंजना भट्ट

सच / अंजना भट्ट

तुम्हारा सच, मेरा सच बस तुम जानो या मैं जानूं. तो फिर क्यों है इतनी उम्मीदें, बंधन और कड़वाहट? तुम्हारा अकेलापन या मेरा अकेलापन बस तुम जानो या मैं जानूं. तो फिर क्यों है इतना इंतज़ार और बेकरारी एक आकांक्षित मिलन की? तुम्हारे सपनों की हंसीं या उनका रुदन मेरे सपनों की हंसी या उनका… Continue reading सच / अंजना भट्ट

प्रभु की नगरी / अंजना भट्ट

कौन कौन है बसता इस सुनहरी नगरी में कुछ अपने कुछ पराये कुछ कोहरे कुछ साए धुंधले हैं या उजले? रमती रहूँ इस नगरी में या फिर बेघर हो जाऊं? इस नगरी में मेरा कुछ ना अपना ना पराया, सब प्रभु का जाया और फिर उसमें ही समाया मैंने तो कुछ ना बनाया ना बसाया… Continue reading प्रभु की नगरी / अंजना भट्ट

दिल के राज / अंजना भट्ट

मेरे दिल के राज, मेरी जिंदगी का ताना बाना पूरा तो मैने भी ना जाना तो तुम्हें कैसे बताऊँ कि कब हुआ मेरे सपनों के नगरी में तुम्हारा आना जाना. तुम्हारे प्यार का सुकून तुम्हारे प्यार की मस्त मदहोशी मेरे हिस्से की ख़ामोशी, मेरे हिस्से की मदहोशी क्या पूरा पूरा जी पाई? या फिर टुकड़ों… Continue reading दिल के राज / अंजना भट्ट

कहानी / अंजना भट्ट

वो आया मेरा मन कुछ भरमाया इससे पहले कि मै कुछ सोचती अपने मन को टटोलती या कुछ सपने बुनती अचानक पाया कि वो तो था सिर्फ एक साया. सालों बीते जिन्दगी ने एक दिन फिर सामने ला खड़ा किया मैने हैरानी से पलकें झपकाईं तो उसे उसके जीवन साथी के संग पाया, और वो?… Continue reading कहानी / अंजना भट्ट

मेरी रूह – मेरा वादा / अंजना भट्ट

मेरी नज़रों ने वायदा किया है मेरी रूह से कि सनम तेरे सिवा कुछ ना देखेंगी तू ये जानता है ना कि मेरी रूह तू है? मैं शायद खुदा की बनायी पहली और अकेली औरत हूँ जो अपने जिस्म के टुकड़े से ज्यादा प्यार अपने आदमी से करती है क्योंकि जिस्म के सब टुकड़े भी… Continue reading मेरी रूह – मेरा वादा / अंजना भट्ट

करवाचौथ का त्यौहार / अंजना भट्ट

दुल्हन का सिंगार और किसी की आँखों में बसने का विचार पूरा ही ना हो पाया… और इस दिलो-जान से प्यारे दिन की वीरानी मेरे रग रग में एक ठंडे लोहे की तरह उतर गयी. मुझे भी विकल करती है उन कंगनों की झंकार जिनसे मैंने अपनी उदास बाहें नहीं सजाई. मुझे भी सताती हैं… Continue reading करवाचौथ का त्यौहार / अंजना भट्ट

माँ…क्या एक बार फिर मिलोगी? / अंजना भट्ट

तिनका तिनका जोड़ा तुमने, अपना घर बनाया तुमने अपने तन के सुन्दर पौधे पर हम बच्चों को फूल सा सजाया तुमने हमारे सब दुःख उठाये और हमारी खुशियों में सुख ढूँढा तुमने हमारे लिए लोरियां गाईं और हमारे सपनों में खुद के सपने सजाये तुमने. हम बच्चे अपनी अपनी राह चलते गये, और तुम? तुम… Continue reading माँ…क्या एक बार फिर मिलोगी? / अंजना भट्ट

मेरे बच्चे, मेरे प्यारे / अंजना भट्ट

मेरे बच्चे, मेरे प्यारे, तू मेरे जिस्म पर उगा हुआ इक प्यारा सा नन्हा फूल… क्या है तेरा मुझसे रिश्ता? बस….एक लाल धागे का… टूटने पर भी उतना ही सच्चा, उतना ही पक्का जितना परमात्मा से आत्मा का रिश्ता. तेरी मुस्कुराहटों से जागता है मेरी सुबहों का लाल सूरज. तेरी संतुष्टी में ढलता है मेरी… Continue reading मेरे बच्चे, मेरे प्यारे / अंजना भट्ट