दीदनी है ज़ख़्म-ए-दिल और आप से पर्दा भी क्या इक ज़रा नज़दीक आ कर देखिए ऐसा भी क्या हम भी ना-वाक़िफ़ नहीं आदाब-ए-महफ़िल से मगर चीख़ उठें ख़ामोशियाँ तक ऐसा सन्नाटा भी क्या ख़ुद हमीं जब दस्त-ए-क़ातिल को दुआ देते रहे फिर कोई अपनी सितम-गारी पे शरमाता भी क्या जितने आईने थे सब टूटे हुए… Continue reading दीदनी है ज़ख़्म-ए-दिल / ‘अख्तर’ सईद खान
Category: Akhtar Saeed Khan
आज भी दश्त-ए-बला में / ‘अख्तर’ सईद खान
आज भी दश्त-ए-बला में नहर पर पहरा रहा कितनी सदियों बाद मैं आया मगर प्यासा रहा क्या फ़ज़ा-ए-सुब्ह-ए-ख़ंदाँ क्या सवाद-ए-शाम-ए-ग़म जिस तरफ़ देखा किया मैं देर तक हँसता रहा इक सुलगता आशियाँ और बिजलियों की अंजुमन पूछता किस से के मेरे घर में क्या था क्या रहा ज़िंदगी क्या एक सन्नाटा था पिछली रात का… Continue reading आज भी दश्त-ए-बला में / ‘अख्तर’ सईद खान