गूंगे अंधेरों में / अग्निशेखर

ओ मातृभाषा ! दया करो हमारे नवजात बच्चों पर कहाँ जाएंगे हम तुम्हारे बिना इन गूंगे अंधेरों में गहमागहमी भरी सड़कों पर दौड़ती हुई दूर-दराज़ शहर की बसों के दरवाज़ों पर सवारियों के लटकते गुच्छों के बीच फँसे हम याद करते हुए अपने गाँव पूछेंगे ख़ुद से कौन हैं यहाँ हम क्या है हमारा पता… Continue reading गूंगे अंधेरों में / अग्निशेखर

19 जनवरी 1990 की रात / अग्निशेखर

घाव की तरह खुलती हैं मकानों की खिड़कियाँ छायाओं की तरह झाँकते हैं चेहरे हर तरफ़ फैल रहा है बर्फ़ानी ठंड में शोर हमारी हड्डीयों की सुरंग में घुसने को मचलता हुआ गालियाँ, कोसने, धमकियाँ कितना-कुछ सुन रहे हैं हम तहख़ाने में कोयले की बोरियों के पीछे छिपाई गई मेरी बहनें पिता बिजली बुझाकर घूम… Continue reading 19 जनवरी 1990 की रात / अग्निशेखर

बंसी पारिमू से / अग्निशेखर

(बन्सी पारिमू प्रसिद्ध प्रगतिशील चित्रकार) तुम्हें समझाया था मैंने मत करो चिनारों के काटे जाने पर हंगामा मत चिल्लाओ डल झील की तबाही पर मत कहो सिविल-कर्फ़्यू में भी मरी हैं घरों में सत्ताईस मुसलमान गर्भवती बहनें तुम्हें समझाया था मैंने मत लिखो रंगों से ऎसी कविताएँ जो तुम्हें मरवा डालेंगी एक दिन

हिजरत / अग्निशेखर

जब मेरी उपस्थिति मेरे न होने से बेहतर लगने लगे जब मैं एक भी शब्द कहने से पहले दस बार सोचूँ जब बच्चे की सहज किलकारी तक से पड़ता हो किसी की नींद में खलल और जब दोस्तों के अभाव में करना पड़े एकान्त में किसी पत्थर के साथ सलाह-मशवरा तब मैं पड़ता हूँ संघर्ष… Continue reading हिजरत / अग्निशेखर

जोख़िम / अग्निशेखर

एक लड़की करती है किसी से प्यार सड़कों पर दौड़ने लगती हैं दमकलें साइरन बजाते कवि चढ़ता है अपनी छत पर और मुस्कुराता है कुछ पल वह बदल देता है अपनी कविता का शीर्षक बच निकलती है लड़की

वतन / अग्निशेखर

तुम आते हो यहाँ दूर-दराज़ शहरों में, ओ वतन ! और कौंध जाते हो हर रात लाखों जनों के अलग-अलग सपनों में एक साथ कोई कश्मीरी नहीं जो पहले नींद से उठकर सुनाता नहीं अपने अनुभव तुम ही लू लगने से हमारे गिर पड़ने में गिरते हो राह चलते अचानक साँपों के काटे तुम ही… Continue reading वतन / अग्निशेखर

सुमित्रा / अग्निशेखर

झूठ नहीं बोलेंगी हवाएँ झूठ नहीं बोलेगी पर्वत-शिखरों पर बची हुई थोड़ी-सी बर्फ़ झूठ नहीं बोलेंगे चिनारों के शर्मिन्दा पत्ते उनसे ही पूछो सुमित्रा के मुँह में चीथड़े ठूँसकर उसे कहाँ तक घसीटती ले गई उनकी जीप अपने पीछे बाँधकर हम तो बोलते हैं झूठ कि पहले उसके साथ किया गया था बलात्कार पर हवाएँ… Continue reading सुमित्रा / अग्निशेखर

नर्स सरला भट्ट / अग्निशेखर

उम्हें वह देती है निकालकर अपनी रगों से ख़ून पोंछती है उनके हताहत शरीर साँसों से करती है उनका मरहम दूसरे कमरे में बिस्तर पर निकाली जा रही है उसके एक घायल सम्बन्धी की जान सिहर उठता है उसका रोम-रोम पुलिस को मिलता है चार दिनों के बाद अस्पताल की सड़क पर पड़ा उसका मथा… Continue reading नर्स सरला भट्ट / अग्निशेखर

हम ही / अग्निशेखर

अनुमान लगा सकते हैं हम किसका शव मिला होगा वितस्ता नदी से किसको दी गई होगी फाँसी सेबों के बाग़ में किसको ले गए होंगे घर से उठाकर आँसू किसके गिरे होंगे ओस की तरह घास पर अनुमान लगा सकते हैं हम यहाँ जलावतनी में

कवि लोग / अग्निशेखर

बरसों से भूखी हैं कविताएँ कवि लोग करवा रहे हैं उनसे बंधुआ मज़दूरी शोषण कर रहे हैं भुक्खड़ कवि और आलोचक सो रहे हैं चालान की बहियों पर फड़फड़ा रहे हैं ज़मीन पर पड़े सूखे पतझड़ी पत्ते। बाज़ार में महंगे दामों पर भी उपलब्ध नहीं है कविता की आदिम ख़ुराक न उसकी प्यास के लिए… Continue reading कवि लोग / अग्निशेखर