बारिश में पिट रही स्त्री / अग्निशेखर

तेज़ बारिश और आधी रात में मेरा पड़ोसी अपनी पत्नी को पीट रहा है जैसे स्वतत्रता-संग्राम का कोई दृश्य हो थाने में सत्याग्रही बारिश में पीट रहा है मेरा पड़ोसी अपनी पत्नी को नि:शब्द है स्त्री संकोच और लज्जा के साथ कौन नहीं जानता आँसुओं की दुनिया में चेहरे पर हँसी स्त्री के ईजाद है… Continue reading बारिश में पिट रही स्त्री / अग्निशेखर

अलाव / अग्निशेखर

पहुँच गए थे हम निबिड़ रात और बीहड़ अरण्य में जलाया सघन देवदारों के नीचे हमने अलाव तप गया हमारा हौसला सुबह होने तक रखा तुमने मेरे सीने पर धीरे से अपना सिर स्मृतियों से भरा विचारों से स्पंदित और स्वप्न से मौलिक भय और आशंकाओं के बीच सुनी तुमने मेरी धडकनों पर तैर रही… Continue reading अलाव / अग्निशेखर

केन पर भिनसार / अग्निशेखर

बीच पुल पर खड़ा मैं अवाक‌ ओस भीगी नीरवता में बांदा के आकाश का चन्द्रमा हो रहा विदा केन तट पर छोड़े जा रहा पाँव के निशान बड़ी-बड़ी पलकों वाली उसकी प्रेयसी बेख़बर मेरी और मेरे कविमित्र की मौज़ूदगी से निहारती एकटक वो मुक्तकेशी जन्मों से बँधी अभी मांग में उतरेगा केसर और संसार बदल… Continue reading केन पर भिनसार / अग्निशेखर

सत्याग्रही पेड़ / अग्निशेखर

कभी जमा होते थे कांकेर की खंडी नदी के किनारे तुम्हारी छाँव में स्वतन्त्रता सेनानी तुम उनका पसीना पोंछते योजनाएँ सुनते हौंसला देखते आज जब मनाई जा रही हैं कियों-कैयों की जन्म-शताब्दियाँ किसे याद होगा तुम्हारे सिवा इन्दरू केवट का गांधीपना देखने भर से उसे तुम्हारी डगालों में पृथ्वी के नीचे सोई जड़ों से दौड़… Continue reading सत्याग्रही पेड़ / अग्निशेखर

कबूतर सपना / अग्निशेखर

जलावतनी में एक स्वप्न देखा मैंने मेरे छूटे हुए घर के आँगन में फिर से हरा हो गया है चिनार और उसकी एक डाल पर आ बैठी है झक सफ़ेद कबूतरों की एक जोड़ी मुझे देखती अनझिप ये कबूतर उतरना चाह रहे हैं मेरे कंधो पर लगा मुझे ये आए हैं स्वामी अमरनाथ की गुफा… Continue reading कबूतर सपना / अग्निशेखर

धूल / अग्निशेखर

जब हमें दिखाई नहीं देती पता नहीं कहाँ रहती है उस समय और जब हम एक धुली हुई सुबह को जो खुलती है हमारे बीच जैसेकि एक पत्र हो उसके किसी बे-पढ़े वाक्य को छूने पर हमारी उँगली से चिपक जाती है यह कैसे समय में रह रहे हैं हम कि धूल सने काँच पर… Continue reading धूल / अग्निशेखर

कवि का जीवन / अग्निशेखर

कविता लिखना तपे हुए लोहे के घोड़े पर चढ़ना है या उबलते हुए दरिया में छलाँग मार कर मिल आना उन बेचैन हुतात्माओं से जो करते हैं हमारी स्मृति में वास पूछना उनसे शहीद होने के अनुभव और करना महसूस अनपे रक्त में उनके नीले होठों पर दम तोड़ चुके शब्दों को यह कविता मेरे… Continue reading कवि का जीवन / अग्निशेखर

काला दिवस / अग्निशेखर

मै इस तारीख़ का क्या करूँ पहुँचता हूँ बरसों दूर मातृभूमि में सीढ़ियों पर घर की फैल रहा है ख़ून अभी तक मेरी स्मृतियों में गरजते बादलों और कौंधती बिजलियों के बीच स्तब्ध है मेरी अल्पसंख्यक आत्मा वहीं कहीं अधजले मकान के मलबे पर जहाँ इतने निर्वासित बरसों की उगी घास में छिपाकर रखी जाती… Continue reading काला दिवस / अग्निशेखर

जीवन-राग / अग्निशेखर

एक ऊँचे पेड़ की फुनगी में लम्बे नुकीले काँटे की नोक पर आ बैठी चिड़िया और गाने लगी जीवन का गीत और खोलती रही बीच-बीच में सुनहले पंख आकाश में रुक गया कुछ देर सूर्य का विस्मित रथ काँटा नुकीला चुभता गया अन्दर-अन्दर चिड़िया के जीवन में उसकी सोची हुई दुनिया में स्वपन में उड़ारी… Continue reading जीवन-राग / अग्निशेखर

वर्षा / अग्निशेखर

छलनी छलनी मेरे आकाश के उपर से बह रही है स्‍मृतियों की नदी ओ मातृभूमि! क्‍या इस समय हो रही है मेरे गांव में वर्षा