शोख चंचल चुलबुली है, ये शरद की चाँदनी इस कदर मादक नहीं था मरमरी कोमल बदन उम्र में शामिल हुआ है एक अल्हड़ बाँकपन रूप में ख़ुद आ घुली है, ये शरद की चाँदनी स्वप्न बुनती जा रही है जो मिलन के हर जगह सेज पर फिर बिछ रही है एक चादर की तरह दूधिया… Continue reading ये शरद की चाँदनी / हेमन्त श्रीमाल
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फागुन आया रे / हेमन्त श्रीमाल
फागुन आया रे गलियों गलियों र।ग गुलाल कुमकुम केसर के सौ थाल भर-भर लाया रे फागुन आया रे होंठ हठीले रंगे गुलाबी और नयन कजरारे बिन्दिया की झिलमिल में लाखों चमक रहे ध्रुवतारे लहँगा नीला चुनरी लाल पीले कंचुक में कुसुमाल तन लहराया रे फागुन आया रे अ।ग-अ।ग में र।ग लिए चलती-फिरती पिचकारी चला रही… Continue reading फागुन आया रे / हेमन्त श्रीमाल