कहते हैं तारे गाते हैं / हरिवंशराय बच्चन

सन्नाटा वसुधा पर छाया, नभ में हमनें कान लगाया, फ़िर भी अगणित कंठो का यह राग नहीं हम सुन पाते हैं कहते हैं तारे गाते हैं स्वर्ग सुना करता यह गाना, पृथ्वी ने तो बस यह जाना, अगणित ओस-कणों में तारों के नीरव आंसू आते हैं कहते हैं तारे गाते हैं उपर देव तले मानवगण,… Continue reading कहते हैं तारे गाते हैं / हरिवंशराय बच्चन

जुगनू / हरिवंशराय बच्चन

अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है? उठी ऐसी घटा नभ में छिपे सब चांद औ’ तारे, उठा तूफान वह नभ में गए बुझ दीप भी सारे, मगर इस रात में भी लौ लगाए कौन बैठा है? अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है? गगन में गर्व से उठउठ, गगन में गर्व से… Continue reading जुगनू / हरिवंशराय बच्चन

साथी, सब कुछ सहना होगा / हरिवंशराय बच्चन

साथी, सब कुछ सहना होगा! मानव पर जगती का शासन, जगती पर संसृति का बंधन, संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधो में रहना होगा! साथी, सब कुछ सहना होगा! हम क्या हैं जगती के सर में! जगती क्या, संसृति सागर में! एक प्रबल धारा में हमको लघु तिनके-सा बहना होगा! साथी, सब कुछ सहना… Continue reading साथी, सब कुछ सहना होगा / हरिवंशराय बच्चन

को‌ई गाता मैं सो जाता / हरिवंशराय बच्चन

संस्रिति के विस्तृत सागर में सपनो की नौका के अंदर दुख सुख कि लहरों मे उठ गिर बहता जाता, मैं सो जाता । आँखों में भरकर प्यार अमर आशीष हथेली में भरकर को‌ई मेरा सिर गोदी में रख सहलाता, मैं सो जाता । मेरे जीवन का खाराजल मेरे जीवन का हालाहल को‌ई अपने स्वर में… Continue reading को‌ई गाता मैं सो जाता / हरिवंशराय बच्चन

किस कर में यह वीणा धर दूँ / हरिवंशराय बच्चन

देवों ने था जिसे बनाया, देवों ने था जिसे बजाया, मानव के हाथों में कैसे इसको आज समर्पित कर दूँ? किस कर में यह वीणा धर दूँ? इसने स्वर्ग रिझाना सीखा, स्वर्गिक तान सुनाना सीखा, जगती को खुश करनेवाले स्वर से कैसे इसको भर दूँ? किस कर में यह वीणा धर दूँ? क्यों बाकी अभिलाषा… Continue reading किस कर में यह वीणा धर दूँ / हरिवंशराय बच्चन

कवि की वासना / हरिवंशराय बच्चन

कह रहा जग वासनामय हो रहा उद्गार मेरा! १ सृष्टि के प्रारंभ में मैने उषा के गाल चूमे, बाल रवि के भाग्य वाले दीप्त भाल विशाल चूमे, प्रथम संध्या के अरुण दृग चूम कर मैने सुला‌ए, तारिका-कलि से सुसज्जित नव निशा के बाल चूमे, वायु के रसमय अधर पहले सके छू होठ मेरे मृत्तिका की… Continue reading कवि की वासना / हरिवंशराय बच्चन

जो बीत गई सो बात गयी / हरिवंशराय बच्चन

जो बीत गई सो बात गई जीवन में एक सितारा था माना वह बेहद प्यारा था वह डूब गया तो डूब गया अम्बर के आनन को देखो कितने इसके तारे टूटे कितने इसके प्यारे छूटे जो छूट गए फिर कहाँ मिले पर बोलो टूटे तारों पर कब अम्बर शोक मनाता है जो बीत गई सो… Continue reading जो बीत गई सो बात गयी / हरिवंशराय बच्चन

जाओ कल्पित साथी मन के / हरिवंशराय बच्चन

जाओ कल्पित साथी मन के! जब नयनों में सूनापन था, जर्जर तन था, जर्जर मन था, तब तुम ही अवलम्ब हुए थे मेरे एकाकी जीवन के! जाओ कल्पित साथी मन के! सच, मैंने परमार्थ ना सीखा, लेकिन मैंने स्वार्थ ना सीखा, तुम जग के हो, रहो न बनकर बंदी मेरे भुज-बंधन के! जाओ कल्पित साथी… Continue reading जाओ कल्पित साथी मन के / हरिवंशराय बच्चन

इस पार उस पार / हरिवंशराय बच्चन

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरालहरा यह शाखा‌एँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो, बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का, तुम देकर मदिरा के… Continue reading इस पार उस पार / हरिवंशराय बच्चन

ड्राइंग रूम में मरता हुआ गुलाब / हरिवंशराय बच्चन

गुलाब तू बदरंग हो गया है बदरूप हो गया है झुक गया है तेरा मुंह चुचुक गया है तू चुक गया है । ऐसा तुझे देख कर मेरा मन डरता है फूल इतना डरावाना हो कर मरता है! खुशनुमा गुलदस्ते में सजे हुए कमरे में तू जब ऋतु-राज राजदूत बन आया था कितना मन भाया… Continue reading ड्राइंग रूम में मरता हुआ गुलाब / हरिवंशराय बच्चन