बोसा लिया जो चश्म का बीमार हो गए / हैरत इलाहाबादी

बोसा लिया जो चश्म का बीमार हो गए ज़ुल्फ़ें छूईं बला में गिरफ़्तार हो गए सकता है बैठे सामने तकते हैं उन की शक्ल क्या हम भी अक्स-ए-आईना-ए-यार हा ेगए बैठै तुम्हारे दर पे तो जुम्बिश तलक न की ऐसे जमे कि साया-ए-दीवार हो गए हम को तो उन के ख़ंजर-ए-अबरू के इश्क़ में दिन… Continue reading बोसा लिया जो चश्म का बीमार हो गए / हैरत इलाहाबादी

आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं / हैरत इलाहाबादी

आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं सामान सौ बरस के हैं कल की ख़बर नहीं आ जाएँ रोब-ए-ग़ैर में हम वो बशर नहीं कुछ आप की तरह हमें लोगों का डर नहीं इक तो शब-ए-फ़िराक़ के सदमे हैं जाँ-गुदाज़ अंधेर इस पे ये है कि होती सहर नहीं क्या कहिए इस तरह के तलव्वुन-मिज़ाज… Continue reading आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं / हैरत इलाहाबादी