जब प्रश्न-चिह्न बौखला उठे / भाग 7 / गजानन माधव मुक्तिबोध

कोई स्वर ऊँचा उठता हुआ बींधता चला गया । उस स्वर को चमचमाती-सी एक तेज़ नोक जिसने मेरे भीतर की चट्टानी ज़मीन अपनी विद्युत से यों खो दी, इतनी रन्ध्रिल कर दी कि अरे उस अन्धकार भूमि से अजब सौ लाल-लाल जाज्ज्वल्यमान मणिगण निकले केवल पल में देदीप्यमान अंगार हृदय में संभालता हुआ उठता हूँ… Continue reading जब प्रश्न-चिह्न बौखला उठे / भाग 7 / गजानन माधव मुक्तिबोध

जब प्रश्न-चिह्न बौखला उठे / भाग 6 / गजानन माधव मुक्तिबोध

ईमानदार संस्कार-मयी सन्तुलित नयी गहरी चेतना अभय होकर अपने वास्तविक मूलगामी निष्कर्षों तक पहुँची ऐसे निष्कर्ष कि जिनके अनुभव-अस्त्रों से वैज्ञानिक मानव-शस्त्रों से मेरे सहचर हैं ढहा रहे वीरान विरोधी दुर्गों की अखण्ड सत्ता । उनके अभ्यन्तर के प्रकाश की कीर्तिकथा जब मेरे भीतर मंडरायी मेरी अखबार-नवीसी ने सौ-सौ आंखें पायीं । कागज़ की भूरी… Continue reading जब प्रश्न-चिह्न बौखला उठे / भाग 6 / गजानन माधव मुक्तिबोध

जब प्रश्न-चिह्न बौखला उठे / भाग 5 / गजानन माधव मुक्तिबोध

उनके आलोक-वलय में जग मैंने देखा — जन-जन के संघर्षों में विकसित परिणत होते नूतन मन का । वह अन्तस्तल . . . . . . संघर्ष-विवेकों की प्रतिभा अनुभव-गरिमाओं की आभा वह क्षमा-दया-करुणा की नीरोज्ज्वल शोभा सौ सहानुभूतियों की गरमी, प्राणों में कोई बैठा है कबीर मर्मी ये पहलू-पांखें, पंखुरियाँ स्वर्णोज्जवल नूतन नैतिकता का… Continue reading जब प्रश्न-चिह्न बौखला उठे / भाग 5 / गजानन माधव मुक्तिबोध

जब प्रश्न-चिह्न बौखला उठे / भाग 4 / गजानन माधव मुक्तिबोध

दावाग्नि-लगे, जंगल के बीचों-बीच बहे मानो जीवन सरिता जलते कूलोंवाली, इस कष्ट भरे जीवन के विस्तारों में त्यों बहती है तरुणों की आत्मा प्रतिभाशाली अपने भीतर प्रतिबिम्बित जीवन-चित्रावलि, लेकर ज्यों बहते रहते हैं, ये भारतीय नूतन झरने अंगारों की धाराओं से विक्षोभों के उद्वेगों में संघर्षों के उत्साहों में जाने क्या-क्या सहते रहते । लहरों… Continue reading जब प्रश्न-चिह्न बौखला उठे / भाग 4 / गजानन माधव मुक्तिबोध

जब प्रश्न-चिह्न बौखला उठे / भाग 3 / गजानन माधव मुक्तिबोध

दुबली चम्पा जन संघर्षों में गदरायी, खण्डर-मकान में फूल खिले, तल में बिखरे जीवन संघर्षों में घुमड़े उमड़े चक्की के गीतों में कल्याणमयी करुणाओं के हिन्दुस्तानी सपने निखरे — जिस सुर को सुन कूएँ की सजल मुँडेर हिली प्रातः कालीन हवाओं में । सूरज का लाल-लाल चेहरा डोला धरती की बाहों में, आसक्ति भरा रवि… Continue reading जब प्रश्न-चिह्न बौखला उठे / भाग 3 / गजानन माधव मुक्तिबोध

जब प्रश्न-चिह्न बौखला उठे / भाग 2 / गजानन माधव मुक्तिबोध

अपने समुंदरों के विभोर मस्ती के शब्दों में गम्भीर तब मेरा हिन्दुस्तान हँसा । जन-संघर्षों की राहों पर आंगन के नीमों ने मंजरियाँ बरसायीं । अम्बर में चमक रही बहन-बिजली ने भी थी ताकत हिय में सरसायी । घर-घर के सजल अंधेरे से मेघों ने कुछ उपदेश लिए, जीवन की नसीहतें पायीं । जन-संघर्षों की… Continue reading जब प्रश्न-चिह्न बौखला उठे / भाग 2 / गजानन माधव मुक्तिबोध

जब प्रश्न-चिह्न बौखला उठे / भाग 1 / गजानन माधव मुक्तिबोध

जीवन के प्रखर समर्थक-से जब प्रश्न चिन्ह बौखला उठे थे दुर्निवार, तब एक समंदर के भीतर रवि की उद्भासित छवियों का गहरा निखार स्वर्णिम लहरों सा झल्लाता झलमला उठा; मानो भीतर के सौ-सौ अंगारी उत्तर सब एक साथ बौखला उठे तमतमा उठे !! संघर्ष विचारों का लोहू पीड़ित विवेक की शिरा-शिरा में उठा गिरा, मस्तिष्क… Continue reading जब प्रश्न-चिह्न बौखला उठे / भाग 1 / गजानन माधव मुक्तिबोध

शून्य / गजानन माधव मुक्तिबोध

भीतर जो शून्य है उसका एक जबड़ा है जबड़े में माँस काट खाने के दाँत हैं ; उनको खा जायेंगे, तुम को खा जायेंगे । भीतर का आदतन क्रोधी अभाव वह हमारा स्वभाव है, जबड़े की भीतरी अँधेरी खाई में ख़ून का तालाब है। ऐसा वह शून्य है एकदम काला है,बर्बर है,नग्न है विहीन है,… Continue reading शून्य / गजानन माधव मुक्तिबोध

एक अरूप शून्य के प्रति / गजानन माधव मुक्तिबोध

रात और दिन तुम्हारे दो कान हैं लंबे-चौड़े एक बिल्कुल स्याह दूसरा क़तई सफ़ेद। हर दस घंटे में करवट एक बदलते हो। एक-न-एक कान ढाँकता है आसमान और इस तरह ज़माने के शुरू से आसमानी शीशों के पलंग पर सोए हो। और तुम भी खूब हो, दोनों ओर पैर फँसा रक्खे हैं, राम और रावण… Continue reading एक अरूप शून्य के प्रति / गजानन माधव मुक्तिबोध

मैं तुम लोगों से दूर हूँ / गजानन माधव मुक्तिबोध

मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँ तुम्हारी प्रेरणाओं से मेरी प्रेरणा इतनी भिन्न है कि जो तुम्हारे लिए विष है, मेरे लिए अन्न है। मेरी असंग स्थिति में चलता-फिरता साथ है, अकेले में साहचर्य का हाथ है, उनका जो तुम्हारे द्वारा गर्हित हैं किन्तु वे मेरी व्याकुल आत्मा में बिम्बित हैं, पुरस्कृत हैं इसीलिए,… Continue reading मैं तुम लोगों से दूर हूँ / गजानन माधव मुक्तिबोध