घर / एकांत श्रीवास्तव

यह घर क्‍या इतनी आसानी से गिर जायेगा जिसमें भरी है मेरे बचपन की चौकड़ी दीवारों में है आज भी पुराने दिनों की खुशबू ओ घर कितनी बार छुपा-छुपी में तेरे दरवाजों के पीछे छुपा मैं कितनी गौरयों ने घोंसले बनाये तेरे रोशनदान में कितनी बार भविष्‍य की गहरी चिंता में बुदबुदाये पिता कितने दिये… Continue reading घर / एकांत श्रीवास्तव

नदी / एकांत श्रीवास्तव

मुझे याद है आज भी उसके जल का स्‍वाद उसका रूप रंग गंध यह भी कि धूप में वह नीलम की तरह झिलमिलाती थी यह चिडियों के लौटने और अमरूद के पकने का मौसम है उसे मेरा इंतजार होगा उसके सीने में पड़े होंगे आज भी मेरे पत्‍थर उसकी लहरों में कहीं होंगे हमारे बचपन… Continue reading नदी / एकांत श्रीवास्तव

पंडुक / एकांत श्रीवास्तव

वे अकेले पक्षी होते हैं जिनकी आवाज से लगातार आबाद रहती हैं जेठ-बैशाख की तपती दोपहरें वे पंडुक होते हैं जो जलती हुई पृथ्‍वी के झुलसे हुए बबूलों पर बनाते हैं घोंसले पृथ्‍वी के इस सबसे दुर्गम समय में वे भूलते नहीं हैं प्‍यार और रचते हैं सपने अंडों में सांस ले रहे पंडुकों के… Continue reading पंडुक / एकांत श्रीवास्तव

पहाड़ / एकांत श्रीवास्तव

पहाड़ बच्‍चों के सबसे अच्‍छे दोस्‍त हैं उनकी छोटी-छोटी इच्‍छाओं और सपनों के लिए चिन्तित छोटी-सी इच्‍छा है बच्‍चारें की कि वे पहाड़ के कंधे पर बैठकर उड़ायें अपनी पतंगें और आवाज दें मीठे पानी की नदी को कि वह उनके गांव के करीब से बहे पहाड़ भर देते हैं बच्‍चों की कमीज की जेबें… Continue reading पहाड़ / एकांत श्रीवास्तव

गेंदे के फूल / एकांत श्रीवास्तव

इतनी रात गये जाग रहे हैं गेंदे के फूल मुंह किये आकाश की ओर अंधकार एक कमीज की तरह टंगा है रात की खूंटी पर एक बूढ़े आदमी की तरह खांसता है थका हुआ गांव और करवट बदलकर हो जाता है चुप चुप खड़े हैं नींद में डूबे से आम नीम बरगद और जाग रहे… Continue reading गेंदे के फूल / एकांत श्रीवास्तव

फूल / एकांत श्रीवास्तव

सबसे सुन्‍दर फूल हैं वे जो फलों में बदल जाते हैं जो हमारी भूख को मिलते हैं अन्‍न की तरह और अभाव को जरूरत की अनेक चीजें बनकर इस मौसम में जैसे आमों के बौर जिनके आते ही कूकती है कोयल फलों का बचपन हैं ये फूल कल जब हम भूल जायेंगे फूलों को और… Continue reading फूल / एकांत श्रीवास्तव

सपने / एकांत श्रीवास्तव

सपने थकान भरी रात में जल-तरंग की तरह बजेंगे हमारी याञा में हिलेंगे पेड़ों की सघन पंक्ति की तरह सपने हजार-हजार पक्षियों के कंठ एक साथ खुलेंगे मौसम की चुप्‍पी के विरूद्ध हर बार सुस्‍ताते किसी पेड़ की घनी छाया में हम पियेंगे पृथ्‍वी के मीठे और ठंडे कुंड से सपनों का एक घूंट जल… Continue reading सपने / एकांत श्रीवास्तव

धान-गंध-2 / एकांत श्रीवास्तव

यहॉं इसी मौसम में लौटता है वसन्‍त जब कटता है धान और महक उठती है मिट्टी की देह इसी मौसम में फूलते हैं गेंदे के फूल गाती है मॉं लोरी और पीतल की जल भरी थाली में उतरता है चन्‍द्रमा उतार दो एक कमीज की तरह अपनी थकान गीत के जल में डुबो लो अपना… Continue reading धान-गंध-2 / एकांत श्रीवास्तव

धान-गंध-1 / एकांत श्रीवास्तव

वृक्षों की फुनगियों पर टॅंगी है एक झीनी-सी भोर चिडियों के झीने संगीत में डूबी हुई नींद से जाग रहे हैं घर और सिक्‍कों की तरह खनक रहे हैं वे आ रहे हैं बीडियॉं सुलगाते पगडंडियॉं नापते बैलों की टुनटुनाती घंटियों के साथ गहरी सॉंस खींचकर मन-प्राण में भरते सोंधी धान-गंध धूप में चमक रहे… Continue reading धान-गंध-1 / एकांत श्रीवास्तव

नाचा / एकांत श्रीवास्तव

नचकार आए हैं, नचकार आन गाँव के नाचा है आज गाँव में उमंग है तन-मन में सबके जल्‍दी राँध-खाकर भात-साग दौड़ी आती हैं लड़कियाँ औरतें, बच्‍चे और लोग इकट्ठे हैं धारण चौरा के पास आज खूब चलेगी दुकान बाबूलाल की खूब रचेंगे होंठ सबके पान से खूब फबेगी पान से रचे होंठों पर मदरस-सी बात… Continue reading नाचा / एकांत श्रीवास्तव