डर डर के जिसे मैं सुन रहा हूँ खोई हुई अपनी ही सदा हूँ हर लम्हा-ए-हिज्र इक सदी था पूछो न कि कब से जी रहा हूँ जब आँख में आ गए हैं आँसू ख़ुद बज़्म-ए-तरब से उठ गया हूँ छटती नहीं ख़ू-ए-हक़-शनासी सुक़रात हूँ ज़हर पी रहा हूँ रहबर की नहीं मुझे ज़रूरत हर… Continue reading डर डर के जिसे मैं सुन रहा हूँ / एहतिशाम हुसैन
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अक़्ल पहुँची जो रिवायात के काशाने तक / एहतिशाम हुसैन
अक़्ल पहुँची जो रिवायात के काशाने तक एक ही रस्म मिल काबा से बुत-ख़ाने तक वादी-ए-शब में उजालों का गुज़र हो कैस दिए जलाए रहों पैग़ाम-ए-सहर आने तक ये भी देखा है कि साक़ी से मिला जाम मगर होंट तरसे हुए पहुँचे नहीं पैमाने तक रेगज़ारों में कहीं फूल खिला करते हैं रौशनी खो गई… Continue reading अक़्ल पहुँची जो रिवायात के काशाने तक / एहतिशाम हुसैन