एक झील का टुकड़ा / बलराम ‘गुमाश्ता’

बिना वजह यूँ ही लड़ बैठे लटका बैठे मुखड़ा, दुख में कविता लिखने बैठे- एक झील का टुकड़ा। झील का टुकड़ा बिल्कुल वैसा जैसे होती झील, अभी उड़ा जो, चील का बच्चा वैसी होती चील। शीशे जैसा झील का टुकड़ा गहरा कितना सुंदर, खड़े किनारे कंघी करते देखो कितने बंदर। सैर-सपाटे मछली करती गोली, बिस्कुट… Continue reading एक झील का टुकड़ा / बलराम ‘गुमाश्ता’