आशा कम विश्वास बहुत है / बलबीर सिंह ‘रंग’

जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है । सहसा भूली याद तुम्हारी उर में आग लगा जाती है विरह-ताप भी मधुर मिलन के सोये मेघ जगा जाती है, मुझको आग और पानी में रहने का अभ्यास बहुत है जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है । धन्य-धन्य मेरी लघुता… Continue reading आशा कम विश्वास बहुत है / बलबीर सिंह ‘रंग’

ज़माना आ गया / बलबीर सिंह ‘रंग’

ज़माना आ गया रुसवाइयों तक तुम नहीं आए । जवानी आ गई तनहाइयों तक तुम नहीं आए ।। धरा पर थम गई आँधी, गगन में काँपती बिजली, घटाएँ आ गईं अमराइयों तक तुम नहीं आए । नदी के हाथ निर्झर की मिली पाती समंदर को, सतह भी आ गई गहराइयों तक तुम नहीं आए ।… Continue reading ज़माना आ गया / बलबीर सिंह ‘रंग’