हर बढ़ते कदम पर बहुत कुछ है जो पीछे छूट जाता है पीछे छूटी हुई पगडंडियों से मुड़ मुड़ कर गुज़रना हर बार सुखद नहीं रह पाता, ज्यों का त्यों रह जाना कठिन है स्वयं का, लोगों का, चीज़ों का जीवन का, बदलाव के पड़ावों को छूते हुए स्मृतियाँ अक्सर पुकारती हैं लुभाती हैं बुलाती… Continue reading स्मृतियाँ / अंजू शर्मा
Author: poets
जरूरी काम / अंजू शर्मा
आपको शायद ये गैरजरूरी लगे, आलोचनाओं के निर्दयी हथौड़ों के प्रति अक्सर व्यक्त करती हूँ आभार, देती हूँ धन्यवाद, सहेजती हूँ चोटिल शब्द, सहलाती हूँ छलनी स्वाभिमान, संजोती हूँ मनोबल, रिसते घावों से पाती हूँ रोशनाई, मानती हूँ ऐसे मौकों पर मेरा फिर से खड़े हो जाना ही, दुनिया का सबसे जरूरी काम है…
चेतावनी / अंजू शर्मा
सुनो कि मेरा मौन एक चीत्कार है यह डेसिबल की वह अंतिम सीमा है जहाँ शांति के आदी तुम्हारे कान कांपते हुए थामते हैं श्वेत ध्वज, मेरे मौन के पांवों ने उतार फेंकी है रुपहली झाँझरें, उसके पांव तले दम तोड़ रही हैं वे तमाम पोथियाँ जो पनाहगाह थी सभी ‘दिव्य’ वाक्यों की, जो धकेलते… Continue reading चेतावनी / अंजू शर्मा
शिखर पुरुष / अंजू शर्मा
ओ शिखर पुरुष, हिमालय से भी ऊंचे हो तुम और मैं दूर से निहारती, सराहती क्या कभी छू पाऊँगी तुम्हे, तुम गर्वित मस्तक उठाये देखते हो सिर्फ आकाश को, जहाँ तुम्हारे साथी हैं दिनकर और शशि, और मैं धरा के एक कण की तरह, तुम तक पहुँच पाने की आस में उठती हूँ और गिर… Continue reading शिखर पुरुष / अंजू शर्मा
वे आँखें / अंजू शर्मा
उफ़ वे आँखें, एक जोड़ा, दो जोड़ा या अनगिनत जोड़े, घूरती हैं सदा मुझको, तय किये हैं कई दुर्गम मार्ग मैंने, पर पहुँच नहीं पाई उस दुनिया में, जहाँ मैं केवल एक इंसान हूँ एक मादा नहीं, वीभत्स चेहरे घेरे हैं मुझे, और कुत्सित दृष्टि का कोई विषबुझा बाण चीरता है मेरी अस्मिता को, आहत… Continue reading वे आँखें / अंजू शर्मा
स्वप्न जब सो जाते हैं / अंजू शर्मा
एक उनींदी सुबह जब समेटती है कई अधूरे स्वप्नों को, अधखुली आँखों से विदा पाते हैं, भोर के धुंधले तारे, कुछ आशाओं को पोंछकर चमकाते हुए, अक्सर दिखती है, खिड़की के बाहर, फटी धुंध की चादर, उससे तिरता एक नन्हा मेघदूत, जिसके परों पर चलके आता है चमकीली धूप का एक नन्हा सा टुकड़ा भर… Continue reading स्वप्न जब सो जाते हैं / अंजू शर्मा
पापा / अंजू शर्मा
उसके जन्म का कारण थे तुम, पर रहे हमेशा परिणाम से बेखबर, हर व्यस्त सड़क पर ढूँढा नन्ही सी एक हथेली ने तुम्हारी ऊँगली को, उसकी ह़र उपलब्धि तलाशती रही भीड़ में एक मुस्कुराता चेहरा, पीठ पर एक खुरदरा पर स्नेहिल आशीष, जीवन की घुमावदार पगडंडियों पर जब भी पाया तुम्हारा साथ सदा संकोच ने… Continue reading पापा / अंजू शर्मा
मुर्दों में भी हरकत होती है कहीं / अंजू शर्मा
इतिहास की किताबें सुलग रही हैं एक कोने में, रो रहे हैं अशोक, अकबर और चन्द्रगुप्त मौर्य, करोड़ों साल पुरानी एक सभ्यता गिन रही है अपने साल और हर शताब्दी पर, भूल जाती है गिनती, हर एक फतवे और बैन का तमगा अपनी पीठ पर लादे, हर बार कुछ और झुक जाती है, शायद रीढ़… Continue reading मुर्दों में भी हरकत होती है कहीं / अंजू शर्मा
डर / अंजू शर्मा
पुरुष ने देखा प्रेम से, और कहा, कितनी सुंदर हो तुम, शर्मा गयी स्त्री, पुरुष ने देखा कौतुक से, और कहा कुछ नहीं, औरत ने पाया, उसकी आँखों के लाल डोरों को, अपने जिस्म पर रेंगते हुए असंख्य साँपों में बदलते हुए, इस बार डर गयी स्त्री…
शायद यही एक जरिया है मेरे प्रतिकार का / अंजू शर्मा
फिल्म चलती है, समेटती है जाने कितने ही दृश्यों को एक डायलोग से शुरू हो ख़त्म हो जाती है एक डायलोग पर, मध्यांतर में भी उभरते हैं कितने ही दृश्य, एक तानाशाह डालता है अपना जाल और हर बार फंस जाते हैं तेल के कुछ कुँए, वहीँ सर झुकाए खड़ा है कोई आखिरी गोली की… Continue reading शायद यही एक जरिया है मेरे प्रतिकार का / अंजू शर्मा