हमसे मुसाफ़िरों का सफ़र इंतज़ार है / बशीर बद्र

हमसे मुसाफ़िरों का सफ़र इन्तिज़ार है
सब खिड़कियों के सामने लम्बी क़तार है

बाँसों के जंगलों में वो ही तेज़ बू मिली
जिनका हमारी बस्तियों में कारोबार है

ग़ुब्बारा फट रहा है हवाओं के ज़ोर से
दुनिया को अपनी मौत का अब इन्तिज़ार है

किस रोशनी के शहर से गुज़रे हैं तेज़ रौ
नीले समन्दरों पे सुनहरा ग़ुबार है

आई निदा वो उड़ते सितारे इधर मुझे
इन बदलियों के पीछे कोई कोहसार है

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