शहर के फ़ुट-पाथ पर कुछ चुभते मंज़र देखना / सईद अख्तर

शहर के फ़ुट-पाथ पर कुछ चुभते मंज़र देखना
सर्द रातों में कभी घर से निकल कर देखना

ये समझ लो तिश्नगी का दौर सर पर आ गया
रात को ख़्वाबों में रह रह कर समुंदर देखना

किस के हाथों में हैं पत्थर कौन ख़ाली हाथ है
ये समझने के लिए शीशा सा बन कर देखना

बे-हिसी है बुज़-दिली है हौसला-मंदी नहीं
बैठ कर साहिल पे तूफ़ानों के तेवर देखना

ऐ मिरे आँगन के साए ऐ मिरे फलदार पेड़
तेरी क़िस्मत में है अब पत्थर ही पत्थर देखना

ये सितम ये शोरिशों तम्हीद हैं इस बात की
बस्ती बस्ती हर तरफ़ ख़ूँ का समुंदर देखना

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *