ये हुस्न तेरा ये इश्क़ मेरा / साहिर लुधियानवी

ये हुस्न तेरा ये इश्क़ मेरा
रंगीन तो है बदनाम सही
मुझ पर तो कई इल्ज़ाम लगे
तुझ पर भी कोई इल्ज़ाम सही

इस रात की निखरी रंगत को
कुछ और निखर जाने दे ज़रा
नज़रों को बहक जाने दे ज़रा
ज़ुल्फ़ों को बिखर जाने दे ज़रा
कुछ देर की ही तस्कीन सही
कुछ देर का ही आराम सही

जज़्बात की कलियाँ चुनना है
और प्यार का तोहफ़ा देना है
लोगों की निगाहें कुछ भी कहें
लोगों से हमें क्या लेना है
ये ख़ास त’अल्लुक़ आपस का
दुनिया की नज़र में आम सही

रुसवाई के डर से घबरा कर
हम तर्क-ए-वफ़ा कब करते हैं
जिस दिल को बसा लें पहलू में
उस दिल को जुदा कब करते हैं
जो हश्र हुआ है लाखों का
अपना भी वही अंजाम सही

ये हुस्न तेरा ये इश्क़ मेरा
रंगीन तो है बदनाम सही
मुझ पर तो कई इल्ज़ाम लगे
तुझ पर भी कोई इल्ज़ाम सही

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