मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका / पीयूष मिश्रा

मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका
ख़ूब जाना चाहता हूँ अमेरिका
पी जाना चाहता हूँ अमेरिका मैं
खा जाना चाहता हूँ अमेरिका
…क्या क्या क्या है अमेरिका रे बोलो
क्या क्या क्या है अमेरिका
बस ख़ामख़्वाह है अमेरिका रे बोलो
बस ख़ामख़्वाह है अमेरिका
…सोने की खान है अमेरिका
गोरी-गोरी रान है अमेरिका
मेरा अरमान है अमेरिका रे
हाय मेरी जान है अमेरिका
मैं जाना चाहता हूँ…

…अमरीका में ऐसे क्या-क्या हीरे-मोती जड़े हुए
देखो उसके फुटपाथों पर कितने भूखे पड़े हुए
जिधर उसे दिखती गुंजाइश वहीं-वहीं घुस जाता है
सबकी छाती पर मूँगों को दलना उसको आता है

अमरीका है क्या…कद्दू
अमरीका है क्या…बदबू
अमरीका है क्या …टिंडा
अमरीका है…मुछमुण्डा
अब भी सँभल जाइए हज़रत मान हमारी बात
कि घुसपैठी है अमेरिका
बन्द कैंची है अमेरिका
बाप को अपने ना छोड़े
ऐसा वहशी है अमेरिका
…मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका

आपको क्या मालूम जगह है वो क्या मीठी-मीठी-सी
…नंगी पिण्डली देख के मन में जले है तेज़ अँगीठी-सी
बड़े-बड़े है फ्लाईओवर और बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें वहाँ
बड़े-बड़े हीरो-हिरोइन बड़े-बड़े एक्टिंगें वहाँ
जहाँ भी चाहो घूमो मस्ती में कोई ना रोके है
पड़े रहो तुम मौला बनकर कोई भी ना टोके है
इसीलिए चल पड़िए मेरे कहता हूँ मैं साथ

कि रॉल्सरॉइस है अमेरिका
मेरी ख़्वाहिश है अमरीका
फ़रमाइश है अमेरिका रे मेरी
गुंजाइश है अमेरिका
मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका

…अमरीका की बात कही तो ख़ूब मटक गए वाह वाह वाह
ये भूले कि वहाँ गए तो ख़तम भटक गए वाह वाह वाह
क्या-क्या है उसके कूचे में जो है नहीं हमारे में
बात करे हमसे कुव्वत इतनी भी नहीं बेचारे में
हम बतलाएँगे उसको ज़िन्दादिल कैसे होते हैं
सबकी सोचें महक-महक कर वो दिल कैसे होते हैं
इक बन्दा है वहाँ पे जिसका नाम जॉर्ज बुश होता है
छोटे बच्चों पर जो फेंके बम तो वो ख़ुश होता है
ऐसे मुलुक में जा करके क्या-क्या कर पाएँगे जनाब
जहाँ पे चमड़ी के रंग से इंसाँ का होता है हिसाब
इसीलिए हम कहते हैं आली जनाब ये बात

कि हिरोशिमा है अमेरिका
नागासाकी है अमेरिका
वियतनाम के कहर के बाद अब
क्या बाक़ी है अमेरिका
मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका

…ये तो फरमा दिया आपने अमरीका क्या होता है
पर रहती हैं आप जहाँ पे वहाँ पे क्या-क्या होता है
इक रहता है बन्दा जिसकी ज़ात और कुछ होती है
क़ौम-परस्ती देख के उसकी तकलीफ़ें ख़ुश होती हैं
वो फिरता है यहाँ-वहाँ ये आस लिए कि पहचानो
मुझको भी इस वतन का हिस्सा वतन का टुकड़ा ही मानो
वरना देखो मेरे अन्दर भी इक जज़्बा उट्ठेगा
रक्खा है जो हाथ जेब में निकल के ऊपर उट्ठेगा
इसीलिए वो बन्दा कहता बार-बार यही बात

कि मैं जाना चाहता हूँ कहीं और…?
…ना…
मैं रहना चाहता हूँ इसी ठौर…?
…ना…
मैं जानना चाहता हूँ वहाँ-वहाँ…?
…ना…
मैं रहना चाहता हूँ यहाँ-वहाँ…?
…ना…
वहाँ…?
…नहीं
तो वहाँ…?
…नहीं
तो वहाँ…?
…नहीं
तो कहाँ…?

…जब कोई ठौर मेरा ना होने की होती है बात…
तो मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका
मैं खूब जाना चाहता हूँ अमेरिका
मैं पी जाना चाहता हूँ अमेरिका
मैं खा जाना चाहता हूँ अमेरिका
मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका

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