फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है / हुमेरा ‘राहत’

फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है
तअल्लुक़ टूटने को इक बहाना चाहता है

जहाँ इक शख़्स भी मिलता नहीं है चाहने से
वहाँ ये दिल हथेली पर ज़माना चाहता है

मुझे समझा रही है आँख की तहरीर उस की
वो आधे रास्ते से लौट जाना चाहता है

ये लाज़िम है कि आँखें दान कर दे इश्क़ को वो
जो अपने ख़्वाब की ताबीर पाना चाहता है

बहुत उकता गया है बे-सुकूनी से वो अपनी
समंदर झील के नज़दीक आना चाहता है

वो मुझ को आज़माता ही रहा है ज़िंदगी भर
मगर ये दिल अब उसे को आज़माना चाहता है

उसे भी ज़िंदगी करनी पड़ेगी ‘मीर’ जैसी
सुख़न से गर कोई रिश्ता निभाना चाहता है

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