जो इधर से जा रहा है वही मुझ पर मेहरबां है / बशीर बद्र

जो इधर से जा रहा है वही मुझ पे मेहरबाँ है
कभी आग पासबाँ है, कभी धूप सायबाँ है

बड़ी आरज़ू थी मुझसे कोई ख़ाक रो के कहती
उतर आ मेरी ज़मीं पर तू ही मेरा आसमाँ है

मैं इसी गुमां पे बरसों बड़ा मुतमईन रहा हूँ
तेरा ज़िस्म बेतग़ैयुर मेरा प्यार जाविदाँ है

कभी सुर्ख़ मोमी शम्में वहाँ फिर से जल सकेंगीं
वो लखौरी ईंटों वाला जो बड़ा सा इक मकाँ है

सभी बर्फ़ के मकानों पे कफ़न बिछे हैं लेकिन
ये धुँआ बता रहा है, अभी आग भी यहाँ है

कोई आग जैसे कोहरे में दबी दबी सी चमके
तेरी झिलमिलाती आँखों में अजीब सा समाँ है

इन्हीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे
मुझे रोक रोक पूछा तेरा हम-सफ़र कहाँ है

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *