ज़िन्दगानी के भी कैसे-कैसे मंज़र[1] हो गए ।
बे-सरोसामाँ[2] तो थे ही, अब तो बेघर हो गए ।
तुमसे मिलने पर बड़े आशुफ़्तासर[3] थे उन दिनों,
तुमसे बिछड़े तो हमारे दर्द बेहतर हो गए ।
एक क़तरे[4] भर की आँखों में थी उनकी हैसियत,
अश्क[5] जब पलकों से निकले तो समन्दर हो गए ।
कितनी बे-परवाह उड़ानों में थी पहले ज़िन्दगी,
जब ज़मीँ पाई परिन्दे दिल के बे-पर[6] हो गए ।
मौसम दयारे यार[7] का बदला भी तो कुछ इस तरहा,
जो ख़ुद मिसालें[8] थे बहारों की वो पतझर हो गए ।
आशनाई[9] के मुरव्वत[10] दौर में यूँ भी हुआ,
बे-मुरव्वत[11] लोग भी हमदर्द[12] अक्सर हो गए ।
बे-पनाह[13] तन्हाइयों की शाख़[14] से लिपटे हुए,
जो भी गुल उम्मीद के थे नामे दिलबर[15] हो गए ।
कितने तो अरमान दिल में सीfपयों से बन्द थे,
जब खुली राहें वफ़ाओं की तो गौहर[16] हो गए ।
थे बहुत ज़रख़ेज़[17] सपने, सब्ज़[18] थे एहसास भी
पर हक़ीक़त के क़हत[19] से सब ही बंजर हो गए ।।
शब्दार्थ:
1. हालात, परिदृश्य
2. सामान रहित
3. खुश, आनन्दित
4. बून्द
5. आँसू
6. पंख रहित
7. माशूक का घर
8. उदाहरण
9. मित्रता
10. कृपा, दया
11. कृपाहीन
12. दुःख के साथी
13. आश्रयहीन
14. टहनी
15. माशूक के नाम
16. मोती
17. उपजाऊ
18. हरे-भरे
19. अकाल, दुfर्भक्ष