ऐ बैठो कार या आरी, ऐ आगै कितकी त्यारी / अमर सिंह छाछिया

ऐ बैठो कार या आरी, ऐ आगै कितकी त्यारी।
यो समाज जगाणा सै, इसनै तो इसे म्हं आणा सै।…टेक

दिन धोली म्हं करै बेज्जती गुंडा का राज सै।
मुंह तोड़ दिया जवाब या म्हारै भी याद सै।
मोती जैसी आब सै, म्हारी भी पूरी दाब सै।
थारी होगी मन की सारी…

कोऐ 15 की कोऐ 16 की कोऐ साल 20 की होरी।
जान तलक भी दे देगी तेरे हाण की छोरी।
रूप हुश्न म्हं गोरी कट्ठी पोलिंग पै होरी।
बटण दबावै हाथी पै सारी…

फिरगी लहर यो सारा शहर बदलता आवै सै।
बेइमानां का सफाया करता जावै सै।
नारा भीम का लावै सै, ढोल यो भरता आवै सै।
या जीत होवैगी थारी…

कांशीराम नै तो इबकै जौं गंगा म्हं ला दिया।
बेइमाना कै समन तो पहलां आ लिया।
हल्का छोड़ भागगे, दस्त खूनी लागगे।
अमरसिंह रोवै इनकी ए प्यारी…