अंतहीन इंतज़ार / संकल्प शर्मा

कभी सोचती हो?
वो रिश्ता.
जिसका पर्याय,
आज तक ‘अधूरा’ है.
कभी सोचती हो?
वो दर्द.
जो अनवरत है,
फिर भी कितना पूरा है.
वो दिवा स्वप्न,
जो जिंदा हैं.
भले ही
उनमें से कुछ,
अब तक शर्मिंदा हैं.
क्या सोचती हो?
उस अधूरी सी,
हंसी के बारे में भी.
बताओ ना..!!!
या फिर,
कुछ उखड़े उखड़े से,
दो चेहरों के बीच,
वो पसरा सन्नाटा.
याद आता है?
कभी सोचती हो?
उसके बारे में भी.
जिसका प्रायश्चित है,
ये अंतहीन इंतज़ार..

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