लौटती बैलगाड़ी का गीत / एकांत श्रीवास्तव

जब नींद में डूब चुकी है धरती
और केवल बबूल के फूलों की
महक जाग रही है
तब दूधिया चाँदनी में
धान से लदी वह लौट रही है
लौट रहे हैं अन्‍न
बचपन बीत जाने के बाद
बचपन को याद करते
घंटियों की टुनुन-टुनुन
गाँव की नींद तक पहुँच रही है
और सारा गाँव
अगुवानी के लिए तैयार हो रहा है
हिल रही हैं
अलगनी में टँगी हुई कन्‍दीलें
और चमक रहा है गाँव का कन्‍धा
एक माँ के कण्‍ठ से उठ रही है लोरी
कि चाँदी के कटोरे में भरा है दूध
और घुल रहा है बताशा
बैलगाड़ी पहुँच जाना चाहती है गाँव
दूध में बताशे के घुलने से पहले।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *