राधा श्याम सेवैँ सदा वृन्दावन वास करैँ,
रहैँ निहचिँत पद आस गुरुवरु के ।
चाहैँ धन धाम ना आराम सोँहै काम ,
हरिचँदजू भरोसे रहैँ नन्दराय घरु के ।
एरे नीच नृप हमैँ तेज तू देखावै काह ,
गज परवाही कबौँ होहिँ नाहिँ खरु के ।
होय ले रसाल तू भले ही जगजीव काज ,
आसी न तिहारे ये निबासी कल्प तरु के ।