मुझे आपसे प्यार हो गया / घनश्याम चन्द्र गुप्त

मुझे आप से प्यार हो गया

मुझे आप से प्यार हो गया
एक नहीं, दो बार हो गया

पहली बार हुआ था तब जब हमने ली थी चाट-पकौड़ी
तुमने मेरे दोने में से आधी पूरी, एक कचौड़ी,
एक इमरती, आधा लड्डू, आलू छोड़ समोसा सारा,
कुल्फी का कुल्हड़, इकलौता रसगुल्ला औ’ शक्करपारा

लेकर जतलाया था जैसे मुझ पर कुछ उपकार हो गया
और तुम्हारा मेरी हृदय-तिजोरी पर अधिकार हो गया

मुझे आप से प्यार हो गया
एक नहीं, दो बार हो गया

और दूसरी बार हुआ जब मंगवाई थी कोका-कोला
प्यार बढ़ाने का निश्चय कर बोतल के ढक्कन को खोला
एक सींक से दो चुस्की ले बोतल मैंने तुम्हें थमाई
सींक फेंककर तुमने झट से बाकी की इल्लत निपटाई

यह तो सिर्फ बानगी थी, फिर ऐसा बारम्बार हो गया
हंसी खेल की बातें थीं, फिर जीवन का व्यवहार हो गया

मुझे आप से प्यार हो गया
एक नहीं, सौ बार हो गया

शयन-कक्ष में बहुत लगन से मैंने सुन्दर सेज सजाई
तुमने आते ही उस पर कुछ लक्ष्मण-रेखा सी दिखलाई
हाय राम अब कैसे होगा, दो क्षण तो यह चिन्ता व्यापी
पलक झपकते सीमाओं का उल्लंघन स्वीकार हो गया

किसके हिस्से में क्या आया जब यह बात भुला दी हमने
तब हमने सब कुछ ही पाया सहज प्रेम-व्यापार हो गया

मुझे आप से प्यार हो गया
यूं मेरा उद्धार हो गया

– घनश्याम
७ अगस्त, २०११

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