नए हाइकु / ऋतु पल्लवी

1- नभ में पंछी
सागर – तन मीन
कहाँ बसूँ मैं ?
2- कितना लूटा
धन संपदा यश
घर न मिला .
3-चंदन -साँझ
रच बस गयी है
मन खाली था.
4-स्याही से मत
लिखो ,रचनाओं को
मन उकेरो .
5-बच्चे को मत
पढ़ाओ तुम ,मन
उसका पढ़ो.

6-बात सबसे
करते हैं ,मगर
मन की नहीं .
7-अकेली तो हूँ
मगर भीड़ को भी
ओढ़ लेती हूँ.

8-विश्वास टूटा
मानवता का एक
पाठ पा लिया .
9-भोग्या – नारी
विज्ञापन जग के
नशे से बचो .
10- माँ ने भी जब
छोटी बात बनाई
लगी पराई .
11-आकाश ओढ़ो
तारों को बिछा दो
स्वप्न सोएँगे .
12- पूजाघर तो
बनाओ, पर घर
तोड़ो न कभी .
13-शहर बसा
गाँव की कब्र पर
सहर नहीं !
14- अब इंसान
में बम बसता है
ब्रह्म तो नहीं !

15-घर गली औ
दुकान क्या ,शहर
सुनसान हुए .
16एक , दो , तीन
गलतियाँ जीवन
की , कम नहीं !
17-खोया पल न
लौटे फिर ,जीवन
लौट जाता है .
18- कोरे पन्ने हैं
किताब के , जीवन
लिखता नहीं .
19-आज कितनी
द्रौपदियाँ हैं , पर
कृष्ण कंस हैं .
20 गुरु- शाप से
आज अर्जुन बना
एकलव्य है .
21-
रोको झेलम
या चनाब को, धार
आर-पार है .

22- नारी श्रद्धा है
आज इड़ा भी वही
सचेत रहो !
23-मेरे रंग की
आभा लाई ,बेटी क्यों
हुई पराई !
24- ओस- सी नर्म
निश्छल- सी दुनिया
नन्ही कलियाँ !
25-वाणी -सी शुभ्र
लक्ष्मी सी वरदायी
बिटिया आई .
26- हम साथ ही
चलते रहे, तो भी
क्या रास्ते पटे !
27-समय -शिला
सब कुछ लिखे ,तो
कठोर क्यों ?
28-सूरजमुखी-
सा मन खिला पर
मुरझाया भी .
29-सर्दी में जब
ये धूप अलसाई
तू याद आई .
30- मन अकेला
भीड़ का रेला , मेला
किस काम का .
31-बेटे की ऊँची
पढ़ाई , क्या कटाई ?
सिर्फ बुआई .
32-हवा चली ले
झीनी नर्मी , हरती
मन की गर्मी .
33-संवेदन की
खिली छटा निराली ,
फिर भी खाली .
34- हाथ – हाथ में
बात – बात में खिले
मैं और तुम .
35-तुंग शैल भी
घन की नमी पर
रो पड़ता है .
36- साथ तुम्हारा
प्यार है ,घर नहीं
न ही द्वार है .
37-सब माँगा जो
जीवन से ,मुझे ही
क्यों छोड़ दिया  ?

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