जल गई है कोई कंदील मेरे भीतर/ हेमन्त शेष जल गई है कोई कन्दील मेरे भीतर और शब्दों का मोम पिघलना शुरू हो गया है यों बहुत दिनों बाद खुली खिड़की कविता की