गोदना / वालेस स्टीवेन्स / धर्मवीर भारती

रोशनी मकड़ी है
जल पर रेंगती है
बर्फ़ के किनारों पर
तुम्हारी पलकों के तले
और वहाँ अपना जाला बुनती है
अपने दो जाले

तुम्हारे नेत्रों के जाले
हिलगे हैं, तुम्हारे
माँस और अस्थियों से
जैसे छत की कड़ियों या घासों से
तुम्हारे नेत्रों के डोरे हैं
जल की सतह पर
बर्फ़ के छोरों पर।

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