अपलक / सत्येन्द्र श्रीवास्तव

चाँद ने मुझमें देखा
मैंने चाँद में
देखते ही रहे
हम रुके नहीं
मिले थे नयन और
झुके नहीं
भर आईं
मेरी ही आँखें
बाद में।

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